प्रभु राम - मीनू कौशिक

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मेरे प्रभु राम से कैसे , भला  कोई  वैर  को पाले ,

अधर मुस्कान मोहिनी , नयन करुणा भरे प्याले ।

धरा ये  राम  की  है , राम से  विद्रोह क्या करना ,

ये नादानी नहीं अच्छी , चलो इस  वैर  को टाले ।

न निज हित को कोई साधे , राम के नाम को लेकर ,

न  इस  घर  को कोई  बांटे , राम के नाम को लेकर ।

राम जन-जन का है  प्यारा ,  सदा निर्बल का सहारा,

मिटे  सब  भेद  अब  सारे , राम के नाम  को लेकर । 

️ मीनू कौशिक "तेजस्विनी", दिल्ली