कवयित्री राधा शैलेन्द्र की जूनून-औ-सफलता की कहानी
Vivratidarpan.com - वो जब लिखती हैं तो दर्द दिल में और आंसू रोशनाई में समेट लेती हैं.एक संवेदनशील लड़की और उसकी लेखनी....मानो ऐसा लगता हैं ये हर एक की अपनी कहानी हैं.
राधा शैलेन्द्र साहित्य और कविता की दुनिया में झिलमिलाता एक नाम... बहुत छोटी सी उम्र में बहुत कुछ कर गुजरने का जूनून.. बस इसी जूनून को अपनी जिंदगी का मकसद बना वो लिखती हैं.
छोटी सी उम्र में जीवन की कड़वी सच्चाईयों को करीब से देखने वाली साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय पहचान बनाने वाली राधा शैलेन्द्र की महज 14 वर्ष की उम्र में पहली पुस्तक आइना प्रकाशित हुई थी ,जिसे पढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी लेखनी की भरपूर सरहाना की थी। कहते है एक कवि ही दूसरे कवि की असली प्रतिभा की सराहना करता है, श्री अटल बिहारी वाजपेयी राधा की लेखनी से इतने प्रभावित थे कि वो जब तक जीवित रहे 23 वर्षो तक दोनों के बीच खतों का प्यारा रिश्ता बना रहा।
पूर्व वाणिज्यकर आयुक्त स्व. पारस नाथ सिंह की बेटी और भागलपुर के डॉक्टर की पुत्र वधू राधा की शादी 18 मई 1997 को भागलपुर के बिजनेस मैन शैलेन्द्र से हुई। साहित्य और व्यापार दो अलग विधाएं है। लेकिन पति के स्नेह और विश्वास ने उनके क़लम को रुकने नही दिया। 1999 में उनकी दूसरी पुस्तक प्रकाशित हुई भीड़ के चेहरे, जिसका लोकार्पण पटना के विद्यापति भवन में त्रिपुरा के राज्यपाल श्री सिधेश्वर प्रसाद के हाथों हुआ था। उन्होंने उस पुस्तक की सरहाना करते हुए राधा को खत लिखा कि "आपकी लेखनी हिंदी और ऊर्दू का संधि स्थल है जो अहम है, मैं आपकी प्रखर लेखनी की सराहना करता हूँ।"
नई लेखनी और प्रखर योग्यता इस पुस्तक को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के .आर . नारायण के राष्ट्रपति सचिवालय के पुस्तकालय में स्थान दिलवाया। ये वो सम्मान था जिसने 22 साल की लड़की के लिखने के हौसले को पर दे दिया। राधा को भीड़ के चेहरे के लिए क्रमश: सहस्त्राब्दी महादेवी वर्मा राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान, अंगभूषण सम्मान, वीरांगना सावित्री बाई फुले फ़ेलोशिप अवार्ड, नई दिल्ली, भोपाल में श्रेष्ठ साहित्य साधना सम्मान, कवयित्री श्री सम्मान आदि से नवाजा जा चुका है। वे समाजसेवा में भी आगे रहती है।
राधा बताती है कि उन्हें साहित्य के लिए प्रेरणा अपने पिता से मिली है जो अब इस दुनिया में तो नही है लेकिन उनकी दी हुई सीख आज भी साथ है। राधा अपने पिता से बेइंतहा प्यार करती थी और 24 वर्ष की छोटी उम्र में उसने अपने पिता को खो दिया तो अपनी सारी संवेदना उसने अपनी काव्य-संग्रह "फिर भी" में रख पिता को अपनी श्रद्धाजंलि दी हैं। राधा की तीसरी किताब " फिर भी" का विमोचन बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति श्री जाबिर हुसैन के हाथों हुआ। इस काव्य-संकलन के लिए राधा को डॉ अम्बेडकर फेलोशिप अवार्ड,दिल्ली ,सुमन चतुर्वेदी राष्ट्रीय सम्मान , भोपाल द्वारा मिल चुका है!
इनकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी भागलपुर से होता रहता है। इनका कहना है " आज के इस भौतिकवादी युग ऐसा कोई बाजार नहीं जहां आपकी भावनाओं की कद्र हो। इसलिए अपनी बेहतरी के लिए हमें खुद मेहनत करके अपने आप को सम्मानित बनाना होगा।अपनी योग्यता को आगे लाइए सफलता अवश्य मिलेगी। आपकी योग्यता की बुनियाद मजबूत होगी तो हर सफर आसान बन जायेगा, जिंदगी आपके सही कदम में हमेशा हमसफर बनकर साथ देती है बस आत्मविश्वास की डोर कभी कमजोर न होने दे।"
हाल ही में राधा को भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी नेशनल एक्सीलेंस अवार्ड, स्टार मिलेनियम अवार्ड, भगवान बुद्ध नेशनल अवार्ड, मैसूर,साहित्य शिरोमणि अवार्ड, अमृता प्रीतम अवार्ड, अखिल भारतीय मेधावी सृजन अवार्ड 2020 मिल चुका है। इसके साथ ही जयपुर में इन्हें "वीमेंस नेशनल अवार्ड" और हरियाणा करनाल में" इंटरनेशनल प्राइड वीमेंस अवार्ड" भी दिया गया है।
सिर्फ यही पर उनकी साहित्यिक यात्रा खत्म नहीं होती। अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन ने राधा को " शताब्दी सम्मान" से सम्मानित किया जो केंद्रीय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने उन्हें अपने हाथों से दिया। राधा अपनी सारी उपलब्धियों का श्रेय अपने माता-पिता और पति शैलेन्द्र को देते हुए कहती है कि "इन लोगो के प्यार और आशिर्वाद ने मुझे ये मुकाम दिलाया हैं। मेरे बच्चे आदित्य और हर्षिता मेरी हिम्मत है। इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसके अपने होते है आपकी खुशी तब और बढ़ जाती है जब उनका प्यार और स्नेह उसमें शामिल हो। हाल ही में राधा को "तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान" से सम्मानित किया गया।
अपनी समाजसेवा से भी राधा गरीब और जरूरत मंद लोगो की मदत करती है,इसलिए कोरोना काल में भी मानवधिकार टुडे ने उन्हें" कोरोना वारियर्स उपाधि " से सम्मानित किया।राधा की रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। हाल ही में राधा को दिल्ली में "वेदजीला एक्सीलेंस अवार्ड "से नवाजा गया है। राधा की उपलब्धि यहीं खत्म नहीं होती उन्हें "प्राइड ऑफ ग्लोबल अवार्ड" से भी सम्मानित किया गया है।
साहित्य सेवा की ये सारी उपलब्धि उनकी कर्मठता और साहित्य सृजन को दर्शाती है। हाल ही में इन्हें लायंस क्लब ने भी सम्मानित किया है।
राधा की कविताएं उनकी संवेदना की प्रतिमूर्ति है, वो नारी के तकलीफ पर लिखती है,एसिड अटैक के जले हुए रूहानी दर्द पर लिखती है, माँ के खोने के गम को स्याही में डूबोकर लिखती है, दहेज की आग को महसूस करके लिखती है बस हर दर्द को खुद में समेट कर लिखती है।
उनकी एक रचना "रिश्तों की परछाईयां" में एक नारी के सारे रिश्ते को बड़ी शिद्दत से लिखा गया है...
"रिश्तों की परछाईयाँ"
ज़िन्दगी के रोशनदान से
झांक रही रिश्तों की परछाईयाँ
दबे पांव हौले से आकर करती है
अनगिनत बातें मुझसे !
जिसमें होती है बचपन की यादें
मायके का प्यार और रिश्तों का दुलार
माँ की लोरी, पिता का प्यार
भाई की नसीहत, बहनों की नोक झोंक !
फिर दबे पांव आती है जीवन में
एक नये रिश्ते की सौगात
जहाँ प्यार से ज़्यादा होता है
जिम्मेंदारियों का एहसास
अपनी मिट्टी से कटकर
एक नए घर मे खुद को
स्थापित करने का एहसास !
रिश्तों के अनगिनत मायने बदलते
कई सारे चेहरे और उनके नाम
और उनमें छिपा एक इकलौता "शख्स"
हाथ थामे कहता है:
" चलो पार करले एक साथ मिलकर
जीवन की ये नदी
तुम नाव मैं पतवार बनू
तुम आस मैं सांस बनू
और मिलकर सार्थक करे रिश्ते की परिभाषा"
आज सच मे रोशनदान से छन कर आती रोशनी
कहती है मुझसे :
" प्यार की मिठास समेटे तुम्हारी,
ज़िन्दगी ने जीत ली है रिश्तों की मर्यादा
एक नारी की परिभाषा
जो रखती है हर संबंध का मान" ।
हाल हीं में राधा की चौथी काव्य संग्रह 'लम्हों का सफर " का अनावरण बिहार के माननीय राज्यपाल श्री राजेन्द्र विश्वनाथ आलेर्केर ने राज भवन में किया.
ये काव्य -संग्रह जिंदगी के हर जज़्बात... हर रंग को खुद में समेटे सफर को बयां करता
"लम्हों का सफर" राधा शैलेन्द्र की हिंदी कविताओं का चौथा संग्रह हैं जिसका संपादन किया हैं दिनेश वर्मा ने.. नीलम पब्लिकेशन मुंबई से प्रकाशित इस काव्य -संकलन में 119 कविताएं हैं और सबसे बड़ी बात हैं की लम्हों का सफर यक़ीनन जीवन के हर सफर को खुद में समेटे हुए हैं.शैलेन्द्र का नाम कविता की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम हैं! क्योंकि उनमें संभावनाये हैं जीवन के सभी रंग हैं. 'आईने के रूबरू' बड़ी अच्छी कविता हैं जिसमें राधा ने खुद को सामने रख के आईने से कई सवाल किये हैं.... एक चंचल नदी थी जो आज खामोश सी हो गयी हैं, जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते अपना वजूद हीं खो चुकी हैं.
रिश्तों का एक हुजूम जो चलता था साथ -साथ जरुरत के साथ उसके मायने बदल गये हैं! आज उन्हीं रिश्तों की गर्माहट ढूंढ़ती हूँ जो नहीं दिखती अब इर्द -गिर्द कहीं भी. लेकिन तलाश अब भी जारी हैं. मिल सकें सकूं के पल, इन्ही रिश्तों में कहीं? इस प्रश्न चिन्ह में कई सवाल हैं सच हम सभी को अब ऐसे हीं रिश्ते की आज जरुरत हैं.
इनकी कविताओं में प्रेम हैं, विरोध हैं, समर्पण हैं नारी की मौन संवेदना हैं लेकिन प्रेम कई रूपों में आया हैं बार -बार आया हैं और सबसे अधिक बार आया हैं!मेरे हमसफर तुम्हारें लिए कुछ भी करने का हौसला रखती हूँ आईना हूँ मैं, हर सूरत देखने के साथ हीं टूटने का हौसला रखती हूँ /मैं नीचे हूँ गिर नहीं सकती, न हीं तुम्हें गिरने दें सकती, तुम्हें संभालने का हौसला रखती हूँ /सुख -दुख में जो अनुभव आयें उन्हें शब्दों में टांकने का हौसला रखती हूँ /ये जो ह्रदय हैं, तुम्हारा हैं सिर्फ तुम्हारा /तुम रहो सलामत खुशहाल इसलिए जीने का हौसला रखती हूँ!
दूसरी कविता में राधा कहती हैं 'मुझे चाहत नहीं दोनों जहां मेरी धरोहर हो /तुम अपना साथ बस मेरी उम्मीदों से मिला दो न!जो ख्वाब बुन रही हूँ रखकर तुमको ताने -बाने में, कभी फुरसत मिलें तो आकर उनको तुम भी देखो न!मैं सबकुछ झेल जाऊंगी /हर तूफान से लड़ भी जाऊंगी /तुम बस ये कह दो न मेरे हो तुम /मैं सांसे भी खुदा से जाकर मांग लाऊंगी!
अपनी कविता 'वो मोम सी.....' में राधा कहती हैं,मोम सी पिघलती हुई औरत /अंदर से उतनी हीं चट्टान होती हैं /समझती हैं दुनिया जिसे आंखों का नीर /दरअसल वो धधकता हुआ लावा हीं तो हैं!तवे पे पड़ी वो पसीने की बूंदे, जिन्हें शायद अपने भी नहीं देख पाते /कटी हुई उंगलियों पर मिर्ची की जलन और न जाने कितने जले जख्मों के निशान /इन तमाम छोटी छोटी नजरअंदाज की हुई बातें /एक औरत में सिर्फ लावा हीं तो भरती हैं!इन दबी चिंगारियों के बीच वो मुकम्मल करती हैं तस्वीर खुद की /रंग भी भरती हैं अपने हीं पसंद की!पंख जिन्हें वक्त ने,हालात ने, अनगिनत जिम्मेदारियों ने भुला दिया था पर उड़ना जानती हैं वो /कैसे छूनी है ऊँचाई आकाश की!जानती है वो......
बड़ी गहरी सी बात है इन कविताओं में.कविता की पंक्तिया सारे हालातों से गुजरने के बावजूद बेहतर की तलाश करती है. कविताओं में हिन्दी की आम बोलचाल की भाषा के शब्द है /अपनी कविता कवयित्री जैसे जवाब जैसे जवाब भी देती है - 'नहीं मुझे कोई शब्दकोश नहीं छानना/कुदरती कविताएं शब्दकोश की मोहताज नहीं होती /ऐसा हैं मेरा मानना.
संग्रह में यूँ तो कई कविताएं ऐसी है जो रूह को छू जाती है ऐसा लगता है जैसे कवयित्री ने दर्द को खुद में समहित कर लिया है........भागलपुर में हुए एसिड अटैक की घटना पर वो लिखती है "तेजाब की जलन रूह जला रहीं हैं माँ /इतनी सुलग रहीं हूँ की हर पल गल रहीं हूँ /जानती हूँ मेरे साथ क्या हुआ, इतना हुआ कि आत्मा झुलस गई... अरमान जल गये जो सजाये थे ख्वाब मैंने पल में झुलस गये... जिस्म पर जख्म, शरीर पर जले के निशान, दरिंदगी की हद, हैवानियत की चोट खुद में समेटे मैं जीना चाहती हूँ..... हाँ माँ मैं जीना चाहती हूँ !
अपनी कविता "माँ तुम्हीं नजर मुझे आयी थी "राधा ने अपनी माँ के जाने के गम को कुछ ऐसे बयां किया हैं "संवेदना तुम मेरी हो.. ये दुनिया कहाँ समझ पायेगी पर रंग बदलकर रोज नया.. तुम पर हीं लिख जाती हूँ... माँ हर रोज आँसू पीती हूँ पर दर्द नहीं दिखलाती हूँ!"
'एक तुम्हीं तो हो'कविता में वो लिखती हैं एहसासों के परे जिंदगी से कैसे कोई ख्वाहिश न रखूँ /एक दिल मैंने भी तो संभाल रखा हैं एक स्त्री होने के नाते /बुनती हूँ हर रोज उम्मीद के धागे से तुम्हारे सपनों की चादर ताकि तुम सो सको चैन की नींद.... "
'अकेली लड़की' की ये पंक्तिया बड़ी सारगर्भित हैं "पराये शहर में अकेली लड़की /कितनी बेबस हैं इस जहां में अकेली लड़की /एक बसेरे की तलाश में परिस्थितियों से समझौता करेंगी /सारी उम्र चक्रव्यूह में उलझी हीं रहेगी /और जब नहीं निकाल पायेगी इस चक्रवयुह से /तो छोटे -छोटे टुकड़े में कटी मिलेगी /उसके समूचे अस्तित्व की लाश /किसी फीर्ज के कोने में."
सच 'लम्हों का सफर 'एक ऐसा काव्य -संग्रह जो हर पाठक को कहीं कहीं से खुद से जुड़ा सफर लगेगा. हर पन्ने पर एक नई संवेदना, एक सोच जो यक़ीनन सोचने पर मजबूर करती हैं... राधा शैलेन्द्र को बधाई कि उन्होंने निसंदेह अच्छा लिखा हैं और बड़े सहज़ शब्दों में अपने पाठकों से क्षमा भी माँगा हैं इन शब्दों में "भारी भरकम शब्द मुझे आते हीं नहीं जब भी दिल में कुछ आया हैं जज़्बात की रोशनाई से उसे कागज पर उकेरा हैं... माफ जरूर कीजियेगा गर आपकी कसौटी पर खड़ी न उतरी तो एक ओस की बूंद समझकर ओझल कर दीजियेगा...कुछ देर तो रहीं जेहन में..राधा शैलेन्द्र वार्ता में बताती हैं :
मैंने समाज के हर पहलू,हर दर्द को अपनी कविताओं में उतारा है,चाहे वो दहेज की आग हो,तेजाब की जलन हो,नारी के हर रंग को समाज के सामने रखने की कोशिश की पर हर बार मैं टूट जाती जब भी लगता बस अब नहीं कुछ छुट जाता मुझसे ,अब मेरी माँ चली गई एक शानदार व्यक्तिव जो मेरे लिए एक विशाल छाया थी दूर चली गई पर उनकी दुआओं का ऐसा असर निकल क उनकी ये बेटी केंद्रीय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद के हाथों शताब्दी सम्मान पा गयी।मैंने जिंदगी को जितन करीब से देखा है उससे बस इतना ही जान पायी हूँ कि चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियों से आपका सामना हो आपकी एक सकारात्मक सोच आपको इस कठिन दौर से निकाल देगी.
आज जब वो अपनी सारी उपलब्धियों पर नजर डालती हैं तो एक प्यारा सा शख्स यानि उनके शैलेन्द्र उन्हें नजर आते है जो हमेशा साथ देते रहें उन्हें मैं क्या दे सकती थी इसलिए अपना साहित्यिक सरनेम ही उनके नजर कर बैठी "राधा शैलेन्द्र"!
ईश्वर के आशीर्वाद से दो प्यारे बच्चे जिन्होंने उन्हें कागज कलम से बाहर निकालकर शोशल मीडिया की दुनिया से आप सबों तक पहुँचाया। उनकी बेटी हर्षिता हमेशा उन्हें लिखने के लिए प्रेरित करती है"माँ पहले आप लिख लो फिर कुछ करना,वरना वो फ़ीलिंग्स खो जायेगी
प्लीज् माँ बस अभी।" सच कहती है वो, हर भावनाएं लम्हों पर ही निर्भर करती है हर बात बदल जाती है कुछ पलों में! बेटा आदित्य हर्षित उनकी उपलब्धियों से काफी खुश होता है,उसकी खामोशी और प्यार से गले लगाना बताता है कि वो कितना खुश होता है मेरी हर उपलब्धि से.सभी के लिए बस इतना कहना चाहूँगी कोई नहीं जानता आपकी जिंदगी में एक प्रेरणा की किरण कब आ जाये जो हाथ पकड़ कर कहे " अभी और संवरना है तुम्हें" हाँ मैं अपने जूनून की ही बात कर रही हूँ तकरीबन इन वर्षो में बहुत कुछ सीखा है,खास कर अपना जुझारू व्यक्तित्व खुद कई कहानी बयां करता है।मैं शुक्रगुजार हूँ ईश्वर की जिसने बड़े प्यार से मेरे हुनर को सम्मान दिया ,निखारा और आप सबों के रूबरू खड़ा कर दिया।
अपनी पहचान बनाना सिर्फ आपके हाथों में है, परिस्थितियों से हर मान लेगी तो कभी आपकी मंजिल आपको नहीं मिलेगी,उन परिस्थितियों को आपको अपने अनुकूल बनाना होगा।आपकी सकारात्मक सोच और बुलंद इरादे आपको वो सबकुछ देगा जिसकी आप कामना करती है।
समर्पण और सहनशीलता स्त्री के वो हथियार है जिससे वो पूरे संसार को जीत लेती है। नारी हर शक्ति का समावेश खुद में समेटे रहती है शर्त सिर्फ इतनी है कि वो घर-परिवार की जिम्मेदारियो के साथ खुद के साथ भी
न्याय करना सीखें ,अपनी इच्छाओं को मारना त्याग नहीं हैं, अपने हुनर को बंद ताले में रखना अन्याय है खुद के प्रति दिल खोल कर जीये, लिखना चाहती है लिखिए, पढ़ना चाहती है खूब पढ़िए यानी हर रूप में अपने शौक को जिंदा रखिये तभी आपके अंदर की औरत जिंदा रहेगी। अपनी हस्ताक्षर आप खुद बनिये जो है जैसी है उसे संवारिये किसी की नकल या कॉपी करके नहीं बल्कि खुद को पहले से बेहतर प्रस्तुत करके ,अपनी प्रतिस्पर्धा सिर्फ खुद से रखिये बहुत आगे जायेगी। अपनी जिंदगी के मायने और दायरे आप खुद तय कीजियेगा।