कवित्व की पहचान - सुनील गुप्ता

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(1) लहराए चलें

जब अंतर्मन में

भावों का गहरा समुंदर यहाँ पे  !

तब, जो विचार कागज पे उतर आएं....,

वही' कवित्व की पहचान ', हमारी बन जाएं !!

(2) महकती रहें

विचारों की बगिया

सतत हमारे अंतस पटल पे  !

जो विचार हमें उद्वेलित कर जाएं.....,

फिर,वही रच-बस आएं सरस गीतों में बनके !!

(3) कसकती चलें

कुछेक मन व्यथाएं

और जीवन में नैराश्य का भाव जगाएं !

ये भाव निकल बन आएं जब गीत गज़ल.....,

तो,कवित्व भाव में डूबें,स्वयं को भूल जाएं !!

(4) लरजती चलें

खुशियों की लहरें

जब आनंद में हो सराबोर, हम डूबते जाएं  !

हों तभी प्रस्फुटित सुंदर अप्रतिम रचनाएं...,

जो हमें उल्लासित और प्रफुल्लित बनाएं !!

(5) सरसाए चलें

मन को हवाएं

और गीत गुनगुनाते आगे बढ़ते चलें  !

जब दिखे दूर कहीं टिमटिमाता एक दीपक....,

तो, तन-मन में कवित्व भाव में जागते चलें !!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान