कविता - सुनील गुप्ता

(1) " क ", कह सकें जो शब्द मन भावों को
सदैव सुंदर काव्य रुप में अपने !
और जो चलें छोड़ते सभी पर प्रभाव....,
वही कविता जोड़े सबको हृदय से !!
(2) " वि ", विशेष बात कहने सुनने के लिए
बनी कविता हमेशा से ख़ास विधा !
अपनी आवाज को चलें देते परवाज़....,
और कहें मन की बात कविता में सदा !!
(3) " ता ", ताकिद रहे कि कविता में कभी
होएं ना नकारात्मक संदेश विचार !
और हो आपस में जोड़ने का भाव.....,
ताकि, वे ले चलें सकारात्मकता की और !!
(4) " कविता ", कविता चले कहते दिल की बात
अपने स्वजनों से अपने मन की बात !
है ये प्रिय सरल विरल विधा सुंदर......,
जिसे चलें सभी सहर्ष स्वीकारते साथ !!
(5) " कविता ", कविता चले सदा सबको हर्षाए
और लुभाए सभी का मन यहांपर !
है ये गुरु मुनि श्रेष्ठ जनों की भाषा..,
करते हैं गर्व सभी कविता पे यहां पर !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान