कविता - जसवीर सिंह हलधर

चाहे हों आतंकी साये , चाहे मौत सामने आये ।
भारत माँ की रक्षा वाली ,मैं सौगंध नहीं तोडूंगा ।।
इस मांटी में पला बढ़ा हूँ ,इस मांटी ने दी तरुणाई ।
इक माँ ने पय पान कराया ,दूजी ने सौपी अरुणाई ।
बूँद बूँद शोणित पर उनका ,बनता सबसे पहला हक है ।
पल पल बाट जोहने वाली ,विरहन तो दूजी ग्राहक है ।
मुझ पर घात लगाने वालों ,घाटी को दहलाने वालो ,
नस नस बहते राष्ट्र गान का ,मैं तट बंध नही तोडूंगा ।।1
सरकारों से क्या लेना है ,वो तो आयेंगी जायेंगी ।
कुछ थोड़ा सा कम खाती है, कुछ थोड़ा ज्यादा खायेंगी ।
मुझ पर क्या अंतर लायेंगी ,नेताओं की भाषण वाजी ।
चाहे राज करें पंडित जी ,चाहे राज करें मुल्ला जी ।
हिन्दू मुस्लिम रटने वालो ,खुद अपना ईमान सँभालो ,
कसम तिरंगे की खायी जो ,वो अनुबंध नहीं तोडूंगा ।।2
मेरा अंत पता है मुझको ,समर भूमि में तर जाऊँगा ।
दुश्मन का सीना फाडू या ,लड़ते लड़ते मर जाऊंगा ।
फर्ज निभाओ तुम भी अपना ,दिल्ली वाले खद्दर धारी ।
देश धर्म से बहुत बड़ा है ,सबसे पहली जिम्मेदारी ।
गल जाऊं यदि पग ये अटके ,जल जाऊं यदि मन ये भटके ,
अपने मन पर लगा रखा जो ,वो प्रतिबंध नहीं तोडूंगा ।।3
मेरी माँ की मर्यादाये , दुनिया भर में जानी मानी ।
भरत वंश की युद्ध कथायें , रही सुनाती दादी नानी ।
मुझको झुका नही सकती है ,मौसम की तीखी बाधाएँ ।
बहती हवा सुना जाती है ,अमर शहीदों की गाथाएँ ।
सूरज पहली किरण उतारे ,सागर जिसके पैर पखारे ,
हलधर "इस पावन मांटी से ,निज संबंध नही तोडूंगा ।।4
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून