कविता - जसवीर सिंह हलधर

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खोलो रे अपने नैन अबोध अभागो

भारत वासी जागो जागो जागो ।।

आतंक वाद का ढांचा है फ़ौलादी

यदि ना तोड़ा तो खतरे में आज़ादी ।।

जो सत्य जानकर सत्य नहीं कहते हैं

सत्ता की खातिर मूक बने रहते हैं ।।

वो जाति पाति के गठबंधन वाले हैं

सिंघासन को आतुर जीजा साले हैं ।।

जो लगे हिलाने पांव जमे अंगद का

कारक हैं वो भारत में बढ़े विपद का ।।

ये पाप उन्हीं का हमको मार रहा है

भारत अपने ही घर में हार रहा है ।।

जो  निर्वाचन  में भाग ले पापी है

वो लोकतंत्र का दुश्मन अपलापी है ।।

मत दाता सोते रहे बंद  कमरों  में

गुंडों का यूँ सम्मान बढ़ा नगरों में ।।

मतदान पुण्य का मित्र धर्म पालक है

भ्रष्टाचारी का शत्रु लोभ सालक है ।।

आलस्य और अलगाव हमें मारेगा

जीतेगा गुंडा राज  देश हारेगा ।।

आरक्षण पीछे ठेल रहा प्रतिभा को

बढ़ते भारत की तेज विकास विभा को ।।

हो जहां कहीं भी भ्रष्ट उसे टोको अब

अपराधी को चौराहों पर ठोको अब ।।

मज़हब की आड़ लिए बैठे अपराधी

मरने पर जिनके रोते नकली गांधी ।।

भारत माता पर संकट ये गहरा है

न्यायालय गूंगा है संसद बहरा है ।।

साहित्य बना सत्ता की अब कठपुतली

जंजीरों को बतलाता है वो सुतली ।।

कविता अंगारा "हलधर की "सच मानो

घर में बैठे अय्यारों को पहचानो ।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून