कविता - जसवीर सिंह हलधर

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आराधन युद्ध भवानी का ।

शिव की अर्धांग शिवानी का ।।

रावण में बहुत शक्ति प्रबल ।

राघव के वाण दिखें निष्फल ।।1

व्याकुल है मन रघुनंदन का ।

किस विधि हो अंत दशानन का ।।

कुछ रोज छोड़ के समराधन ।

करते देवी का आराधन ।।2

आदेश दिया बजरंगी को ।

अपने कष्टों के संगी को ।।

दो मुझे एक सौ आठ कमल ।

अंतस को करना शक्ति सबल ।।3

अब काम नहीं होगा दूजा ।

होगी अब देवी की पूजा ।।

कोमल से होवें इंदीवर ।

सारे हो शुद्ध पुष्प सुंदर ।।4

हनुमत ले आये इंदीवर ।

हो ध्यान मग्न बैठे रघुवर ।।

चातक तंद्रा में बैठ गए ।

त्राटक मुद्रा में बैठ गए ।।5

संताप भक्त का जारी है ।

आलाप भक्त का जारी है ।।

घनघोर तपस्या राघव की ।

पुरजोर समस्या राघव की ।।6

यूँ पांच दिवस बीते तप में ।

चंडी के मंत्रों के जप में ।।

छठवे दिन लीन हुए राघव ।

तप के आधीन हुए राघव ।।7

भृकुटी को तान गढ़ाये हैं ।

त्रिकुटी पे ध्यान लगाये हैं ।।

स्वर नाद कांपता है थर थर ।

अर्पित करते जब इंदीवर ।।8

मंत्रों का जाप सघन जारी ।

अपना अलाप लगन जारी ।।

दो दिवस हुए उपवासन पर ।

निस्पंद राम अब आसान पर ।।9

अब दिवस आठवे को छिपकर ।

आयी देवी शिव की सहचर ।।

ले गयी उठाकर इंदीवर ।

मुद्रा में लीन रहे रघुवर ।।10

जब हाथ बढ़ाये नारायण ।

करने को अंबुज का अर्पण ।।

अब संशय ने घेरे  रघुवर ।

जब लुप्त हुए दो इंदीवर ।।11

यह शक्ति समीक्षा का पल है ।

यह भक्ति परीक्षा का फल है ।।

राघव की आंखों में जल है ।

संकट में राघव का कल है ।।12

आसन वो छोड़ नहीं सकते ।

रुख अपना मोड़ नहीं सकते ।।

भक्ती में अड़े हुए राघव ।

संशय में पड़े हुए राघव ।।13

माता के वचन याद आये ।

कौशल्या कथन याद आये ।।

आये बचपन के संस्मरण ।

निर्णय का अंतिम संस्करण ।।14

कहती थी माँ राजीव नयन ।

अपने नैनों का किया चयन ।।

आँखों में निश्चय झलक रहा।

रघुवंशी परिचय झलक रहा ।।15

तूणीर पास है राघव के ।

है तीर हाथ में राघव के ।।

निर्णय को भांप गए ब्रह्मा ।

निर्णय से कांप गए ब्रह्मा ।।16

बढ रहे हाथ अब मोचन को ।

करने को नैन विमोचन को ।।

बढ़ रहे हाथ धीरे धीरे ।

देवी भी आ धमकी तीरे ।।17

जब एक आँख पर नोंक रखी ।

राघव निश्चय की छौंक दिखी ।।

आलौकिक एक प्रकाश हुआ ।

राघव को कुछ अहसास हुआ ।।18

अब शक्ति रूप साकार किया ।

ज्योतिर्मय हो आकार लिया ।।

ले लिया बाण अब हाथों से ।

छू लिए प्राण अब हाथों से ।।19

बोली माता सुन रघुनंदन ।

स्वीकार किया तेरा वंदन ।।

अब युद्ध करो राघव निर्भय ।

रण में होगी सच की ही जय  ।।20

अब तेरी जीत सुनिश्चित है ।

रावण का मरना निश्चित है ।।

जब भेद विभीषण बतलाये ।

रावण का अंतिम क्षण आये ।।21

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून