कविता - जसवीर सिंह हलधर

आग लगी दिल्ली में कैसी घातों प्रतिघातों में ।
किसने ये उन्माद जगाया था बातों बातों में ।।
बांस वनों की भांति किए घर्षण दोनों मज़हब दल ।
शांति दूत हांथों में लेकर लहराते थे पिस्टल ।
आंख दिखाता धुंआ काल का बार बार उठता था ,
लपट आंच की ऊंची ऊंची उठती थी रातों में ।।
किसने ये उन्माद जगाया था बातों बातों में ।।1
हमला हुआ पुलिस दल पर भी किसको कौन बचाए ।
दंगे की सुलगी चिंगारी लौट लौट कर आए ।
वहसी नारों की आवाजें उठती चौराहों से ,
पानी नहीं आग बरसी हो जैसे बरसातों में ।।
किसने ये उन्माद जगाया था बातों बातों में ।।2
लिपट तिरंगे में रोयी थी भारत माता की जय ।
अपनी ही शाखा को मानो काट रहे हों किसलय ।
सभी दलों के नामी नेता मौनी बन बैठे थे ,
धूं धूं कर जल गयीं बस्तियां सुलगे जज़्बातों में ।।
किसने ये उन्माद जगाया था बातों बातों में ।।3
नेताओं ने घूम घूम कर तेल आग में डाला ।
कुछ ने टी वी पर मुद्दे को खुली बहस में टाला ।
कौम जमातों की तीखी वाणी से गरल बहा था ,
दिल्ली की गलियां रोयीं "हलधर" इन उत्पातों में ।।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून