पीहर - झरना माथुर

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याद पीहर की सताए,

नैन से मोती बहाए।

मायके की प्रीत दिल में,

है भरी कैसे भुलाए।

स्नेह का आंचल वो मां का,

लौट बचपन को बुलाए।

साथ भाई और बहना,

तीज राखी सब हर्षाए।

स्वाद छूटा था सभी जो,

सब मिले तो आज भाए।

डोर बांधे घर की भाभी,

मन बसे भ्रातृज रुलाए।

आ गई मैं घर पिया के,

अब कहां झरना रमाए ।

- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड