भाजपा को थाली में रखकर सत्ता परोसता विपक्ष - सरदार मनजीत सिंह

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vivratidarpan.com - अभी तक सिर्फ यही सवाल उठ रहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसकी सत्ता आएगी।विपक्षी गठबंधन इंडिया की या सत्ता पक्ष के गठबंधन एनडीए की ।लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि शायद विपक्ष खुद थाली में परोस कर सत्ता एनडीए को  देने के लिए तैयार सा है। आज की विपक्षी एकता को देखकर तो यही लगता है।आज विपक्ष की एकजुटता  ही खतरे में नजर आ रही है ।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए हैं।अब वह बिहार में एनडीए के घटक दल के रूप में मुख्यमंत्री हैं।

अब आगे बढ़े तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने तेवर  दिखा रही हैं।राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बंगाल में जब पहुंची तो लेफ्ट पार्टियां उस यात्रा में शामिल हुई जो ममता बनर्जी को बर्दाश्त नहीं हुआ।ममता ने इसी बात को लेकर कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला और यहां तक कह दिया कि कांग्रेस अपने 300 उम्मीदवार खड़ा करना चाहती है लेकिन वह 40 सीटें भी नहीं जीत पाएगी।

इसी गुस्से में ममता बनर्जी ने कई चेतावनियां भी कांग्रेस को दे डाली,जैसे बनारस से जीत कर दिखाओ, इलाहाबाद से जीत कर दिखाओ ।ममता ने राहुल गांधी की यात्रा पर भी कई तरह के सवाल खड़े किए हैं। ममता बनर्जी ने  भारत जोड़ो न्याय यात्रा का भी मजाक उड़ाया कि

गठबंधन पर तो बात हो नहीं पा रही और राहुल गांधी यात्रा पर हैं। इससे पूर्व में भी राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा निकाली गई थी।उन्होंने लगभग 5 महीने पदयात्रा की अब फिर उनकी यात्रा चल रही है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक या यह कहे  मोदी जी की सरकार आने से पहले लगभग  50 साल से ज्यादा  देश में कांग्रेस ने राज किया। लंबे समय तक सत्ता में रहने पर कांग्रेस में कई सारी कमियां आ गयी। मनमोहन सिंह का कार्यकाल अच्छा कार्यकाल माना गया।देश ही नहीं पूरी दुनिया में स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लौह महिला के रुप में जाना जाता रहा है। उन्हीं के शासन में इमरजेंसी लगाई गई।तब1975 में देश के सभी बड़े नेताओं को जेलों में डाल दिया गया ।

लंबे समय तक देश के सभी बड़े नेता  जेलों  में रहे।उस समय हर नेता जेल से निकलने की कोशिश में जुटा रहा। बाहर आकर ये सभी नेता एकजुट हुए और 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी।

   आज हालात बदल चुके हैं तब विपक्ष के  नेताओं ने सत्ता का स्वाद नहीं चखा था।आज विपक्षी नेता एक बार नहीं कई कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं । फिर चाहे वे ममता बैनर्जी हों,अखिलेश यादव हों,शरद पंवार हों,अरविंद केजरीवाल हों या फिर हेमंत सोरेन या उद्धव ठाकरे। इन सभी की अपनी पार्टियों में स्थिति परम स्वतंत्र न सिर पर कोई जैसी है।जहां वे अपने दल के एकमात्र सर्वेसर्वा हैं। इन पार्टियों के पास फंड भी बहुत है और नेताओं के पास भी कोई कमी नहीं है इसलिए सभी नेता अपने-अपने हित ही देख रहे हैं।आज विपक्ष के पास कोई बड़ा मुद्दा भी नहीं है,ऐसे में विपक्षी एकता होना बहुत ही मुश्किल है।आज हर विपक्षी नेता अपनी हैसियत की लड़ाई खुद लड़ रहा है।आज के हालात भी 1975 के हालातों जैसे  नहीं है ।

कोई हर नेताअपने आप को बड़ा नेता मानकर चल रहा है।सभी नेताओं की अपनी एक हैसियत है। 1975 के मुकाबले में आज सबके पास सरकारी सुरक्षा ,सरकारी गाड़ी, बड़े-बड़े निवास स्थान सब कुछ है।यही बड़ा कारण है कि विपक्ष में एकता नहीं हो पा रही है। हर पार्टी के हर नेता के अपने-अपने  स्वार्थ भी जुड़े हैं। विपक्षी गठबंधन भी भानुमति के कुनबे की तरह ही है।पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और कम्युनिस्ट और कांग्रेस तीनों एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ते हैं।गठबंधन में ममता कम्युनिस्टों  के साथ ही कांग्रेस से भी नाराज ही रहती हैं।यही हाल उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और कांग्रेस के बीच भी है।इसे देखकर ऐसा लगता है कि चुनाव आते-आते सारे दल एकला चलो की नीति अपनाएंगेऔर  विपक्ष में एकता ना के बराबर ही बचेगी।कोई  भी नेता किसी दूसरे नेता को बड़ा  मानने को राजी नहीं।जब तक नेता आपसी विवादों से ऊपर उठकर नहीं सोचगें तो विपक्षी एकता होना बहुत ही मुश्किल है। तब यही कह सकते हैं कि विपक्ष थाली में परोस कर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपने वाला है।(विनायक फीचर्स) लेखक राजनीतिक विचारक एवं राजनीतिक विशेषज्ञ हैं।