आपरेशन ब्लू स्टार और‌ उत्तर प्रदेश के योद्धा

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Vivratidarpan.com - ऑपरेशन ब्लू स्टार को घटित हुए आज 40 वर्ष बीत चुके हैं। इस अभियान में हमारे प्रदेश के विभिन्न यूनिटों के वीरों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। यह आपरेशन भारतीय सेना द्वारा अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया था ।  1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था। आतंकवादियों ने हरमंदिर साहिब पर पूरी तरह से कब्जा जमा लिया था और उसको एक अभेद्य किले में परिवर्तित कर दिया था । इस आपरेशन में हमारी सेना की कई अन्य यूनिटों के साथ 15 कुमाऊं रेजिमेंट और पैरा स्पेशल फोर्स को भी स्वर्ण मंदिर परिसर को खाली कराने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी । इस आपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ वीरों को वीरता पदकों से अलंकृत किया गया था। उस 5/6 जून की रात में हमारे वीरों ने जो वीरता का इतिहास लिखा वह जानना जरूरी है।

     जनपद आगरा के निवासी मेजर भूकांत मिश्रा 15 कुमाऊं रेजिमेंट की अल्फ़ा  कम्पनी के कंपनी कमाण्डर थे। 05 जून 1984 को उन्हें स्वर्ण मंदिर में छुपे आतंकवादियों से परिसर को खाली कराने का आदेश मिला। 05/06 जून की रात प्रातः साढ़े चार बजे मेजर भूकांत मिश्रा के नेतृत्व में उनकी कंपनी ने बख्तरबंद गाडियों के पीछे आड़ लेकर आगे बढ़ना शुरू किया। आतंकवादियों ने उनके ऊपर टैंकभेदी गनों और स्वचालित हथियारों से फायर करना शुरू कर दिया। इस हमले में अग्रिम प्लाटून के जूनियर कमीशन अफसर समेत आठ लोग वीरगति को प्राप्त हो गये। जूनियर कमीशन अफसर के वीरगति को प्राप्त  होते ही अग्रिम प्लाटून का नेतृत्व और नियन्त्रण समाप्त हो गया।

    मेजर भूकांत मिश्रा की कंपनी को भारी नुकसान हुआ और कंपनी का आगे बढ़ना रूक गया। मेजर भूकांत मिश्रा अपनी कंपनी का नेतृत्व करने के लिए आगे आये और अपने सैनिकों को अनुसरण करने के लिए कहा तथा परिसर के ऊपर हमला बोल दिया। मेजर भूकांत मिश्रा के इस साहसिक कदम से उनके सैनिकों में जोश भर गया और वे दुगुने जोश से आतंकवादियों पर टूट पड़े। जनपद रायबरेली के रहने वाले लांस नायक राम बहोर सिंह ने अचानक एक छेद से लाइट मशीन गन की बैरल को बाहर आते देखा । उन्होंने मेजर मिश्रा के ऊपर आसन्न खतरे को भांप लिया और अपनी जान की परवाह न करते हुए तुरंत उस मशीन गन पर कार्यवाही करने के लिए मेजर मिश्रा के सामने पहुँच गए लेकिन तब तक अंदर उपस्थित आतंकवादी ने उनके ऊपर फायर कर दिया । मशीन गन का फायर सीधे लांस नायक राम बहोर सिंह के माथे पर लगा और रायबरेली का यह सपूत मां भारती की गोद में चिरनिंद्रा में लीन हो गया।

     मेजर भूकांत मिश्रा ने छेद के पीछे से लाइट मशीन गन से हो रही फायरिंग को देख लिया और अपनी सुरक्षा की चिन्ता किए बिना उस स्थान की ओर रेंगते हुए आगे बढ़े और एक छेद के माध्यम से उस स्थान पर हैंड ग्रेनेड डाल दिया। इस साहसिक कार्य के कारण लाइट मशीनगन और उसको चलाने वाला दोनों बर्बाद हो गये। लाइट मशीनगन को नष्ट करने के बाद मेजर भूकांत मिश्रा सीढ़ियों के रास्ते परिसर में अपनी कंपनी की ओर बढ़े। वह परिसर में घुसने ही वाले थे कि उनके ऊपर आतंकवादियों ने मीडियम मशीन गन से गोलियों की बौछार कर दी । मेजर भूकांत मिश्रा घायल होकर नीचे गिर पड़े।

     जनपद बस्ती के ग्राम कुसमी के रहने वाले  सिपाही रघु नाथ सिंह मेजर भूकांत मिश्रा के साथ रेडियो ऑपरेटर थे। वह  कंपनी कमांडर मेजर भूकांत मिश्रा से लगभग 25 मीटर पीछे थे। सिपाही रघु नाथ सिंह ने देखा कि मेजर भूकांत मिश्रा घायल होकर नीचे गिर पड़े हैं। अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए वह अपने कंपनी कमांडर को बचाने के लिए  दौड़ पड़े। मौके पर पहुंचने पर उन्होंने महसूस किया कि उनके कंपनी कमांडर वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। उन्होंने तुरंत मेजर भूकांत मिश्रा की कार्बाइन उठाई और आतंकवादियों की तरफ दौड़ पड़े, लेकिन आतंकवादियों ने उनके ऊपर भयंकर गोलीबारी कर दी जिससें वे मौके पर ही वीरगति को प्राप्त हो गए।

    इसी ऑपरेशन के दौरान जनपद जौनपुर के पैरा स्पेशल फोर्स के जवान नायक गिरधारी लाल यादव एक टीम के टीम कमांडर थे, जिन्हें इस इमारत से आतंकवादियों को खदेड़ने का काम सौंपा गया था। इनकी टीम ने  जैसे ही इमारत में प्रवेश किया, पूरी टीम आतंकवादियों द्वारा की जा रही मशीनगन की भारी फायरिंग की चपेट में आ गयी जिससे टीम का आगे बढ़ना मुश्किल हो गया। नायक गिरधारी लाल यादव ने अपने साथी सैनिकों को पुर्नगठित किया और आगे बढ़ने के लिए व्यक्तिगत रूप से टीम का नेतृत्व संभाला। उन्होंने जैसे ही आगे बढ़ना शुरू किया आतंकवादियों ने उनके ऊपर मशीनगन से ब्रस्ट फायर झोंक दिया। अपनी चोट की परवाह न करते हुए वह गन पोस्ट की ओर दौड़ पड़े और गन पोस्ट के अन्दर एक हैंड ग्रेनेड डाल दिया जिससे गन पोस्ट बरबाद हो गयी। इस कार्यवाही के बीच में ही आतंकवादियों ने उनके ऊपर मशीनगन से दूसरा ब्रस्ट फायर कर दिया, जिसके कारण भारत मां का यह अमर सपूत मौके पर ही वीरगति को प्राप्त हो गया।

इस आपरेशन में हमारे प्रदेश के कुल 10 वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, जिनमें  से चार वीरों मेजर भूकांत मिश्रा, नायक गिरधारी लाल यादव,  लांसनायक राम बहोर सिंह और सिपाही रघुनाथ सिंह  को उनके अतुलनीय साहस और बहादुरी के लिए शांतिकाल के वीरता पदकों से अलंकृत किया  गया  । प्रदर्शित वीरता के लिए मेजर भूकांत मिश्रा को मरणोपरांत “अशोक चक” तथा नायक  गिरधारी लाल यादव, लांसनायक राम बहोर सिंह और सिपाही रघुनाथ सिंह  को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

     इन पंक्तियों के लेखक ने इनके परिजनों से संपर्क कर इनकी व्यथा को जानने की कोशिश की । वीरगति प्राप्त करने वाले ज्यादातर परिवारों का दर्द एक जैसा है । इस ऑपरेशन को घटित हुए आज 40 वर्ष हो चुके हैं ,  लेकिन उस समय प्रशासन और राजनीतिक लोगों द्वारा किए गए वादे कोरे वादे ही साबित हुए हैं । इनमें से ज्यादातर वीरों के साहस और वीरता को याद रखने के लिए प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है । इनमें से कई वीरता पदक विजेताओं के परिवार आज भी राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली एकमुश्त तथा वार्षिकी राशि के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं। सरकारी उदासीनता के चलते जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' की कविता “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले” की सार्थकता समाप्त होती जा रही है।  - हरी राम, अयोध्या , उत्तर प्रदेश फोन नंबर-7087815074