कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता - मुकेश कबीर

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Vivratidarpan.com - निदा फ़ाज़ली मेरे एकमात्र पसंदीदा उर्दू शायर हैं।वैसे तो सब अपनी जगह श्रेष्ठ हैं लेकिन निदा फाजली अपने आप मेंअद्भुत  थे।मंच पर गए तो कभी कट्टर नहीं हुए,फिल्मों में गए तो वल्गर नहीं हुए और साहित्य में गए तो सार्थक  ज्ञान ही दिया।कभी मैं सोचता हूं कि सूर,कबीर और ग़ालिब का सार एक ही पन्ने में लिखना हो तो उस पन्ने का नाम होगा निदा फ़ाज़ली। ग़ालिब की तरह निदा फाजली भी हिंदुस्तानियत के शायर थे,जब भी बात की इंसान की बात की,हिंदू मुसलमान की नहीं।उनकी भाषा भी इतनी सरल रही कि आम इंसान भी तुरंत समझ ले,साहित्य में कहावत है कि सरल लिखना ही सबसे कठिन है और यही काम निदा ने किया। खुद भी बहुत सरल थे,दोस्त को जरूरत पड़ी तो अपना कमरा दे दिया और खुद पार्क में सो गए जबकि वो जिस मुकाम पर थे,वो लाखों लोगों का ख्वाब होता है फिर भी लेशमात्र अहंकार नहीं था उन्हें।उनका एक दोहा है भी-                  .                                         माटी से माटी मिले खो के सभी निशान,

किसमें कितना कौन है कैसे हो पहचान।

निदा फाजली का लोकप्रिय गीत "तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है" आज भी रोमांचित करता है।वैसे निदा फाजली स्टार शायर रहे लेकिन वे इससे भी ज्यादा डिजर्विंग थे जो शायद उन्हें मिला नहीं। लेकिन शायद यही मुकद्दर... खैर, उनका ही एक शेर है जो उन पर पूरी तरह फिट बैठता है कि"कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता" ।(विभूति फीचर्स)