दलबदलू राजनीति के माहिर खिलाड़ी बने नीतीश कुमार - सरदार मनजीत सिंह

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vivratidarpan.com - सुबह मुख्यमंत्री ,दोपहर में पूर्व मुख्यमंत्री और शाम होते-होते पुनः मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार का नाम अब इतिहास में दर्ज होगा । ये अलग बात है कि अब वे  राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी, दल बदलने में माहिर और  गिरते राजनीतिक स्तर  को और गिराने के लिए भी जाने जाएंगे।

    सन 2015 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव जीता लेकिन सन 2017 में उन्होंने यह गठबंधन छोड़ भाजपा के साथ सरकार बनाई ।सन 2022 में उन्होंने इसके ठीक उलट बीजेपी के साथ चुनाव जीतने के बाद राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई ।अब 2024 में नीतीश कुमार  ने बीजेपी के साथ नई सरकार बना ली। नीतीश कुमार ने नौंवी बार राज्य के सीएम के  रूप में शपथ ले ली है। नीतीश

शायद हिंदुस्तान में पहले मुख्यमंत्री हैं जो इस तरह के खेल खेलते रहे हैं। सुबह कहीं तो शाम कहीं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर वे फिर मुख्यमंत्री बन गए, हैं ऐसा तो शायद इतिहास में पहली बार हो रहा है।इसे नीतीश कुमार की गद्दी की लालसा ही कहा जाएगा।  सिद्धांतवादी राजनीति तो कह ही नहीं सकते।

अब नीतीश कुमार की लालसा जग जाहिर हो चुकी है।वे विपक्षी गठबंधन के संयोजक बनना चाहते थे। प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश भी उनके दिल में थी लेकिन गठबंधन में संयोजक ना बनाए जाने पर बौखलाहट में नीतीश ने फिर जोड़-तोड़ की राजनीति प्रारम्भ कर दी।

नीतीश कुमार ने जनता के विश्वास को कई बार तोड़ा है । भारत की राजनीति में ऐसा कोई नेता नहीं हुआ जिसने इस तरह जोड़-तोड़ करके अपनी कुर्सी बचाने का कार्य किया।

 इस पूरे प्रकरण  से विपक्ष को सबक लेना होगा।  अगर भारतीय जनता पार्टी से उन्हें मुकाबला करना है तो निजी स्वार्थ को छोड़ना होगा तभी वे बीजेपी को हरा सकते हैं। इस प्रकरण के बाद  देश के अंदर चल रहे राजनीति समीकरण को देखते हुए  लग रहा है कि विपक्ष दिनों दिन कमजोर होता जा रहा है।विपक्षी दलों में आपसी  तालमेल  की स्पष्ट रुप से कमी दिखाई दे रही  है।

कांग्रेस के राहुल गांधी फिर एक बार भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे हैं। इससे पूर्व भी राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा  निकाली गई। विपक्ष की ओर से वे एकमात्र नेता हैं जो इस तरह से सक्रिय दिख रहे हैं। अगर हम यह कहें कि विपक्ष का मतलब ही राहुल गांधी है तो कहीं झूठ नहीं है। पिछले कई सालों से विपक्ष के नाम पर एक ही चेहरा पार्लियामेंट में भी नजर आता है वह भी राहुल गांधी  ही है।कांग्रेस कमजोर हो चुकी पार्टी है और धीरे-धीरे कमजोर भी होती जा रही है,विपक्ष में एकता बन नहीं पा रही है। बंगाल में ममता बनर्जी कह रही हैं कि मैं पूरी सीटों पर तैयारी कर रही हूं इधर अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ 11 ही  सीटे देना चाहते हैं। दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल अपनी कहानी कह रहे हैं। हर एक विपक्षी दल अपनी ढपली अपना राग की तर्ज पर सिर्फ अपनी बात कर रहे हैं।

नीतीश कुमार भी इसी कारण अलग हुए । उन्हें विपक्षी गठबंधन का संयोजक तो बनाया नहीं  गया साथ ही उनके अपने ही राज्य बिहार में लालू प्रसाद यादव अपने पुत्र को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की मंशा पाले हुए हैं। नीतीश प्रकरण के बाद तो सारी विपक्षी एकता धूल में मिलती नजर आ रही है। आज का दिन  राजनीतिक इतिहास में एक यादगार दिन के रूप में याद किया जाएगा। जब नीतीश ने पुनः साबित कर दिया कि राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता और न दुश्मन। यहां कब दुश्मन दोस्त बन जाए या कब दोस्त दुश्मन बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। (विनायक फीचर्स) लेखक - राजनीति विशेषज्ञ हैं।