नया साल स्वागतम - रश्मि शाक्य

बेहद सर्द सी है
साल की यह आख़िरी रात
सभी दुबके पड़े हैं
रज़ाई में
या फ़िर हीटर की आँच में
निहार रहे हैं
गुज़रते साल के घंटे-मिनट
मेरे हाथ में है
हरी चाय का मग
आंखों के सामने काँपती सड़क
स्ट्रीट लाइट को
अपनी क़ैद में लेता धुंध-घना कोहरा
कुछ-कुछ बादलों के बीच से
झांकता फ़ैला हुआ आकाश
फ़ोन कॉल्स व्हाट्सएप मैसेंजर से लेकर
फ़ेसबुक तक आ रही प्री बधाइयां
इन सबके बीच में
पूरे साल की उथल-पुथल
हासिल-नुकसान
ग़म-खुशी के न जाने कितने रास्ते
कितने मोड़ को
बड़ी तेज़ी से दोहरा रहा है
मन
पहाड़े सा
मैं गुनगुना रही हूं…
वक़्त की क़ैद में ज़िन्दगी है मगर…
यूं ही पहलू में बैठे रहो….
आज जाने की ज़िद ना करो...
गाते-गाते रुक गया है स्वर
लेकिन अब भी हिल रहे हैं होंठ
किसी अलसाई घाटी में उगे
देवदार के
आकाश छूते
आख़िरी पत्ते की तरह
चाय की अन्तिम घूँट
सोच रही हूं
बदलता हुआ साल
बदलता हुआ मौसम
और बदलते हुए लोग
कितने अच्छे होते हैं
जो बो जाते हैं हम में
नया साल
नया मौसम
नए रिश्ते की चाह
तो फिर स्वागतम
- रश्मि शाक्य गाजीपुर, उत्तर प्रदेश