नववर्ष - प्रदीप सहारे

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नववर्ष की,

पहली भोर ।

गुलाब की पंखुडी पर

छाई हुई दिखी शबनम

छोटी छोटी बूंदे

पराग के संग ,

रही थी घुल मिल

उसे भ्रमर छेड़ने की कोशिश,

कर रहा  बार बार

फुलो के पराग संग,

रस पान करने बेकरार

लेकिन हवा के झोंके से,

सब हो रहा बेकार

सूरज की कोमल किरणें,

पड़ी शबनम के बूंदों पर

चमक उठी वह किरणों से,

नवयौवना के चेहरे  की तरह

भ्रमर जो देखता रहा दूर से

धीरे धीरे सूरज की किरणें,

भरने लगी अपना तेज दम

और बस, उसी के साथ,

शबनम हो गई खतम ।

शुरु हुई फिर ,

नये वर्ष के नये दिन की

उम्मीद ,उत्साह,उमंग,

आशाओं  से भरी,

जीवन की हलचल ।

मुबारक हो आपको,

पारिवार संग यह ।

नववर्ष का  जीवन ।

प्रदीप सहारे, नागपुर , महाराष्ट्र