नीड़ - सुनील गुप्ता

एक नीड़ बनाते पंछी को
है जब-जब यहां पर देखा !
बस, देखते ही दंग रह गया......,
था नायाब उसका तरीका !!1!!
लाती थी वह एक-एक तिनका
अपनी चोंच में रख रखकर !
और बड़े करीने से लगाती.......,
बनाए चलती नीड़ यहां पर !!2!!
सुंदर थे उसके हरेक प्रयास
और निपुण थी नीड़ बनाने में !
अल भोर उठते जुट जाती......,
थी चिड़िया सयानी अपने में !!3!!
कभी-कभी तिनका गिर जाए
तो, झट से वह उसे उठाए !
देख उसकी पुरजोर मेहनत.....,
आनंद से तन मन भर जाए !!4!!
ये नीड़ नहीं, सपनों का घर है
है उसकी घोर कठिन तपस्या !
सहते सदा यहां गर्मी सर्दी.......,
रुप रंग देती है नीड़ को नया !!5!!
बन जब आए सुंदर नीड़
तो, चहकने लगे ये सारा समां !
कलरव करते बच्चों की अनुगूँज.....,
झूम उठे, ये धरा आसमां !!6!!
है नीड़ बनाना सुन्दर कला
अद्भुत है इनका ये संसार !
देख इनकी कुशल कारीगरी......,
झूमें नाचे है सारा परिवार !!7!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान