नाचें मन मोरा लगन बता - अनिरुद्ध कुमार

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व्याकुल नयना बेहाल सखी।

सावन भादो जस हाल सखी।।

मोहन बिनु जीवन जाल सखी।

ई घर आंगन जंजाल सखी।।

हर ताल तलैया आज भरल।

आकुल नयना से नीर झरल।।

ना जाने का अपराध भइल।

पूरा ना कौनों साध भइल।।

जियला मरला में फरक कहाँ।

जीहीं अब कइसे राह बता।।

अबला के जीवन दान मिलों।

ई दिल के हर अरमान मिलों।।

सूखल सावन बेजान सखी।

कजरी गजरी अंजान सखी।।

कइसे विपदा से त्राण मिलें।

चातक के कइसे प्राण मिलें।।

पगलाइल मनवा हार गइल।

लागत बा की अब जान गइल।

ई दुनिया के पहचान कहाँ।

जेने देखीं हर चीज नया।

जीहीं कइसे कुछ जतन बता।

बूते कइसे हइ अगन बता।।

जिनगी के साध अधूरा बा।

उनबिन ना जीवन पूरा बा।।

डहकत दिन-रात सिन्होरा बा।

बेचैन सदा मन मोरा बा।।

आवेके उनकर जतन बता।

नाचें मन मोरा लगन बता।।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड