मुक्तक (नेपाली) - दुर्गा किरण तिवारी

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थाहै छैन यात्रुलाई, यात्रामा कतै गएर रोक्किनुपर्ने हो,

सरस कहाँ होला यात्रा, गएर पत्थरमा ठोक्किनुपर्ने हो,

यस्तै आरोह अवरोहहरू पार गर्दै जानुपर्छ हरेक दिन,

त्यसैले कतै तुषारामा त, कतै रापमा झोक्किनुपर्ने हो।

मुक्ति (हिंदी) -

राहगीरों को क्या पता, सफर के दौरान कहीं जाकर रुकना पड़ता है,

सफर कहा राई होगा जाना है पत्थर से टकराना है,

ऐसी चढ़ाई और बाधाओं को हर दिन पार करना चाहिए,

इसीलिए कहीं तुषारा में कहीं रैप में।

- दुर्गा किरण तिवारी, पोखरा,काठमांडू , नेपाल