पर्वत चलें पुकारे - सुनील गुप्ता

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उत्तुंग चोटी पे

तिरंगा लहरा के

छूआ है शिखर फिर हौंसलों ने !

चलें मनोबल से, जीतते सदा पर्वत....,

और बनाए चलें जीवंत मन का मीत !!1!!

पर्वत सा बनें

चलें सदा मुस्कुराए,

करें मुकाबला सदा संघर्षों से !

यही सीख देते हैं हमको पर्वत....,

कि, करें पार बाधाएं सभी यहाँ पे !!2!!

गिरी पर्वत उपत्यकाएं

विश्वास सदा ही बढ़ाएं,

चलें जीवन का ये पाठ पढ़ाए  !

बनें रहे पर्वत सा, अटल निश्छल....,

और कभी मार्ग से भटक यहाँ ना जाएं !!3!!

पर्वत चलें पुकारे

पसारे अपनी दोनों बाहें,

खड़े हमारा यहाँ पे इंतजार करते  !

आओ चलें आएं पास इनके हम.....,

ये स्वागत में खड़े पलक-पांवड़े हैं बिछाए !!4!!

हिमालय से ऊँचे

हों जीवन के सपने,

चलें करते साकार हम इन्हें  !

और मन व्योम पे, भरें ऊँची परवाज़...,

यही सिखलाते चलें सबक पहाड़ हमें !!5!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान