मेरे तो सब मीत रहे - राजू उपाध्याय

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उत्ताल  तरंगें  जीवन की, लम्हे-लम्हे बीत रहे।

कुछ  मधुमासी  छंद बने, कुछ विरहा गीत रहे।

सुख-दुख की  पटरी पर, अजब अध्याय लिखे,

कुछ झुलस गये धूप से, कुछ फागुनी शीत रहे।

प्रेम  पंथ के पनघट पे,, हर घट में प्यास मिली,

कुछ अध-जल से छलके,, कुछ घट यूँ रीत रहे।

बरसो बरस बीत गये ,बीत गईं  अंधियारी रातें,

जीवन  के मकड़-जाल में, भले-बुरे अतीत रहे।

ऊंच  नीच राह में,सबकी, रही भूमिका अपनी,

खट्टे  मीठे तीखे  थे पर,, मेरे  तो  सब मीत रहे।

हार-जीत  नियति का खेला, सब उलझे  इसमें,

बहुतेरों को मिली हार, कुछ बलिहारी जीत रहे।

मीत पर्व की वेला में, अपनी रही भावना ऐसी,

मेरे-तेरे उर दर्पन में, कृष्ण-सुदामा सी प्रीत रहे।

#राजू उपाध्याय, एटा, उत्तर प्रदेश