मेरे तो सब मीत रहे - राजू उपाध्याय
Aug 6, 2024, 22:55 IST
| उत्ताल तरंगें जीवन की, लम्हे-लम्हे बीत रहे।
कुछ मधुमासी छंद बने, कुछ विरहा गीत रहे।
सुख-दुख की पटरी पर, अजब अध्याय लिखे,
कुछ झुलस गये धूप से, कुछ फागुनी शीत रहे।
प्रेम पंथ के पनघट पे,, हर घट में प्यास मिली,
कुछ अध-जल से छलके,, कुछ घट यूँ रीत रहे।
बरसो बरस बीत गये ,बीत गईं अंधियारी रातें,
जीवन के मकड़-जाल में, भले-बुरे अतीत रहे।
ऊंच नीच राह में,सबकी, रही भूमिका अपनी,
खट्टे मीठे तीखे थे पर,, मेरे तो सब मीत रहे।
हार-जीत नियति का खेला, सब उलझे इसमें,
बहुतेरों को मिली हार, कुछ बलिहारी जीत रहे।
मीत पर्व की वेला में, अपनी रही भावना ऐसी,
मेरे-तेरे उर दर्पन में, कृष्ण-सुदामा सी प्रीत रहे।
#राजू उपाध्याय, एटा, उत्तर प्रदेश