घर के दृढ़ आधार - मीनू कौशिक

घर के दृढ़ आधार पिता ,
आकाश के जैसा कद है,
परिवार के प्राण पिता ,
देवों के जैसा पद है ।
प्रेम की डोर से बाँधे ,
सकल परिवार को अपने,
करें कुर्बान खुश होकर ,
सभी पर अपने वो सपने ।
जीने की जो चाह जगाए ,
हैं ऐसे व्यक्तित्व महान,
उलझन में जो राह दिखाएं
हैं ऐसे दिनकर दिनमान ।
पिता के प्रेम का वर्णन ,
करूँ है शब्दों का टोटा ,
उसे जो बाँधें शब्दों में ,
है ऐसा ज्ञान बहुत छोटा ।
नहीं है अंत कोई भी ,
पितृऋण और उपकारों का,
चुका सकता नहीं कोई ,
कर्ज़ ये कोष कुबेरों का ।
कभी भ्राता के जैसा नेह ,
लुटा मुझको दिया है बल,
कभी दुविधा मेरी सुनकर ,
सखा बनकर दिया संबल ।
मिली जो सीख है उनसे ,
वही है जीवन की पूँजी ।
कोई थाती बढ़कर उनसे ,
नहीं है जीवन की दूजी ।
- मीनू कौशिक, दिल्ली