दौड़ थके हैं पाँव - मीनू कौशिक

यार भले ही हो बरसों से ,
शहर में मेरा ठाँव ।
लेकिन मेरे दिल में बसता ,
आज भी मेरा गाँव ।।
लेकिन मेरे दिल में........
नकली रिश्तें और दिखावा ।
सभी डगर हैं मन भरमावा ।
कदम-कदम पर घात लगाता,
शहर बेदर्दी दाँव ।।
लेकिन मेरे दिल में........
सभी भीड़ के बीच अकेले ।
लाखों संग में लिए झमेले ।
अंत नहीं है यहाँ सफर का ,
दौड़ थके हैं पाँव ।।
लेकिन मेरे दिल में.........
भावों का कोई मोल नहीं है ।
चालाकी का तोल नहीं है ।
शहर दिलों को धोखा देता ,
अंतर्मन को घाव ।।
लेकिन मेरे दिल में ........
हरे-भरे वे खेत मनोहर ।
बाग-बगीचे और सरोवर ।
पीपल महुआ नीम और गूलर,
बरगद की वो छाँव ।।
लेकिन मेरे दिल में..........
अपनेपन की वो गरमाहट ।
घर-आँगन की वो चहचाहट ।
गली-मौहल्ले पास-पडौ़सी ,
और प्रेम का भाव ।।
लेकिन मेरे दिल में ......
खानपान की वो निर्मलता ।
संस्कारों की वो पावनता ।
जुडे़ हुए हैं सभी जडो़ से ,
नहीं कोई भटकाव ।।
लेकिन मेरे दिल में .......
ठहर-ठहरकर चलता जीवन ।
जीवन को मिलती है संजीवन।
जीवन में जीवन को भरता ,
जीने का जगता चाव ।।
लेकिन मेरे दिल में..........
-मीनू कौशिक (तेजस्विनी), दिल्ली