मेरी कलम से - मीनू कौशिक
Apr 19, 2024, 23:17 IST
| ये बैरागी मन अपना भी , राग-रंग में कब रमता है,
दुनिया की बेदर्द महफ़िलें, ज़ख्मी ज़श्न कहाँ जमता है।
दोस्त क़रीबी सब समझाते , कुछ तो सीखो दुनियादारी,
पागल दिल किसकी सुनता है ,चढ़ी है जाने कौन खुमारी।
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कौन है अपना कौन पराया , झूठा है जंजाल ये सारा,
छोड़ कपट जो मिले नेह संग , साथी है वो सबसे प्यारा ।
तथाकथित अपनों की आँखें , जाल बिछाए बैठी हैं ,
छोड़ लड़कपन सही परखले , जीवन नहीं मिले दोबारा ।
✍️.. मीनू कौशिक "तेजस्विनी", दिल्ली