मेरी कलम से - मीनू कौशिक ​​​​​​​

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गिरकर  उठना  टूटके  जुड़ना , नई  इबारत  लिखना ।

पग-पग  नई  चुनौती  माना  , कभी  ना हारे  दिखना ।

कांटे  ठोकर  विषम डगर , सब  तुझको  शीश  झुकाएँ,

टूटन  बिखरन दर्द संजोकर , जीवन का  रस  चखना ।

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दिखा ,   हैं   रंग  कितने , जिंदगी ,  तेरे   पिटारे   में ।

लगे  हैं , ग्रहण  कितने ,और ,किस्मत के सितारे  में ।

चुनौती  है , न  हारी   हूँ , न  हारूँगी  कभी   डरकर ,

लगा  तू ,  जोर  हैं  जितने,  समय  के  तेज  धारे  में ।

- मीनू कौशिक 'तेजस्विनी', दिल्ली