माटी - सुनील गुप्ता
माटी से जुड़ना
और माटी में खिलना
मिलती है खुशी सदा इसी में !
क्या संग लाए
और क्या ले जाएंगे
हैं माटी के पुतले........,
माटी में मिल जाएंगे !!1!!
माटी से पाना
और माटी में खोना
है यही सच इस जीवन का !
माटी से लिपटें
और माटी में सनके
चलें बिखरते जाएं .....,
माटी सा ही बनके !!2!!
माटी है श्रृंगार
और माटी ही उपहार
है माटी जीवन का आधार !
इसी में रचके
और इसी में बसके
सतत चलते रहना.......,
है जीवन का सुख सार !!3!!
माटी के गहने
चुन-चुन माटी के पहनें
चलें सजते संवरते यहां खुशी से !
सौंधी सी ख़ुशबू
उठती माटी की अच्छी
है सरसाए मिलाए......,
जिंदगी को जिंदगी से !!4!!
माटी से माटी
है चले पुकारे
आ लिपटजा माटी से आकर !
माटी से नहाकर
और माटी सा खिलकर
करले स्वयं की.......,
तू पहचान यहां पर !!5!!
माटी है पूजा
और माटी ही कुर्बत
है यही हमारी सच्ची शहादत !
बिन माटी के
अनाथ हैं बेसहारा
है माटी ही माता......,
और यही हमारी इबादत !!6!!
माटी का वंदन
है माटी का अभिनंदन
माटी को शत-शत हमारा नमन !
जिस माटी में लिया जन्म
उस मातृभूमि को ह्रदय से प्रणाम
जीएं मरें माटी की खातिर......,
करें बारम्बार उस माटी को सलाम !!7!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान