मानत नइखीं बतिया - अनिरुद्ध कुमार

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कहवाँ भुलाईल बानी,

बोलीना संहतिया,

मनवा पीराला जोरे,

पागल लागे मतिया।

डूबीं उतराई भटकीं,

हाय रे पीरीतिया।

ओरछोर खोजत बानी,

होता रोजे गतिया।

मनवा टिटिहरी रातदिन,

लेवेला करवटिया।

सोंची सोंची चिहुकेला,

डसलस का सौवतिया।

सगरे उदासी घेरले,

छछनत बावे छतिया।

आँगना दुआरी सूना,

अगोरींले रहतिया।

भूलचूक सोंची हरदम,

मति होला छरमतुआ।

मन नाहीं लागे कहीं,

घेरले बा बिपतिया।

आसरा के डोरी धरीं,

काटीले दिन रतिया।

काहे ना आवत बानीं,

मानत नइखीं बतिया।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड