मन सागर - सुनील गुप्ता

मन सागर खाए हिलोरे
निशदिन साँझ सवेरे !
पल-पल ये लेकर चले....,
घुमाए इच्छाओं के द्वारे !!1!!
मोह सागर चहुँओर हमारे
फैले हैं विशाल अनंत !
पग-पग उसी ओर जा रहे....,
नहीं मन इच्छाओं का अंत !!2!!
छिपे रहस्य सागर में गहरे
है वैसा ही ये मानव मन !
रोज लगाएं डुबकी गहरी....,
ढूंढे गौहर प्रतिपल क्षण !!3!!
लोभ के इस मन सागर से
है बच ना पाए कोए !
एक इच्छा से अनंत इच्छाएं.....,
नित चलें पैदा नयी होए !!4!!
लोभ से उपजे है दमन
और दमन प्रवृति बढ़ाए क्रोध !
ये चले छीनते सुख अमन.....,
और करे नाश हमारा बोध !!5!!
मन के इस तूफान को
देना होगा कहीं तो विराम !
इसका है एक मात्र हल....,
करते चलें बस मंत्र जाप !!6!!
मंत्र जाप करे मन नियंत्रण
और चित्तवृतियों का निरोध !
सुबह शाम करें ओंकार उच्चारण.....,
बने मन निर्मल और सुबोध !!7!!
मन सागर संग नहीं बहें
और लगाए चलें इसपे अंकुश !
समझाएं इस मन को यहां.....,
और नहीं बनने दें इसे निरंकुश !!8!!
करें यम नियम और आसन
प्राणायाम प्रत्याहार धारणा !
करते चलें ध्यान समाधि......,
होएगी मन की शांत अवधारणा !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान