मन जाने मन की बात- यशोदा नैलावल

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माथे  पर  अब तक  पुलकित कुछ  अभिनन्दन  अज्ञात,

सब मौन हुए   जज़्बात मगर, मन जाने मन   की  बात।

नितप्रति पावन मन-मंदिर में,

छवि  मैंने  बस  एक  बसाई।

आंसू   जिसे   छुएं   गंगा  बन,

नियमित   वो   तस्वीर  सजाई।

भावों की   औषधि  तब लेपी  , विस्मृत  कर    आघात,

सब मौन हुए जज़्बात मगर, मन  जाने मन   की  बात।

काट  लिया  हमने   ये   जीवन,

अधरों  पर    मुस्कान   संजोए।

मन   के   भीतर  दर्द साधकर,

पग पग भटके   नयन  भिगोए।

लेकिन    याद   किया   मन   से   जो  चाहे  हों हालात,

सब मौन हुए जज़्बात मगर  , मन  जाने मन  की  बात।

नयनों   में  प्यारी छवि  भरकर,

अन्तस् मृदु पंचामृत  घोला।

हर क्षण सौंप दिया तुमको पर,

अधरों ने   ये   राज़   न खोला।

पूजन उस पल सफल  हुआ जब  गीत हुए  अभिजात,

सब मौन हुए जज़्बात मगर मन  जाने मन    की  बात।

- यशोदा नैलवाल, दिल्ली