आदमी - अनिरुद्ध कुमार

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जिंदगी का मोल जाने आदमी,

प्यार है अनमोल माने आदमी।

वक्त के आगोश में रहता सदा,

रोज आता दिल लगाने आदमी।

हर घड़ी करता तमाशा देखिये,

बात अपनी नित बखाने आदमी।

मेहनत से भाग्य लिखता रात दिन,

काम कर लगता दिखाने आदमी।

धूप हो या छाँव चलता रास्ता,

देख आया फिर रिझाने आदमी।

उलफतों से खार खाये इसकदर,

चोट खा लगता रुलाने आदमी।

'अनि' निहारे हर घड़ी बेचैन हो,

दर्द आजाता सुनाने आदमी।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड