मकर संक्रांति - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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उत्तरायण पर्व है संक्रांति इसको बोलते।

श्री दिवाकर मकर में मधुमास के पट खोलते।1

दिन बड़े होने लगे रातें घटें हर एक दिन।

मुक्त होकर शीत से बासन्त उपवन डोलते।2

दान पुण्य करें सभी स्नान तीरथ में करें।

शीत से काँपे बदन तो गंग हर-हर बोलते।3

उड़ रही नभ में पतंगें भोग खिचड़ी का लगे।

सिंधु आस्था देख मन मानव खुशी से डोलते।4

हर कहीं है धूमधाम हुलास की लहरें उठें।

देश भर में लोग नव उल्लास का रस घोलते।5

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश