धार्मिक उन्माद का परिणाम थी महात्मा गांधी की हत्या - सुभाष आनन्द
vivratidarpan.com - आज के दिन महात्मा गांधी की नाथूराम गोड़से ने हत्या करके देश का हीरो बनने की कोशिश की थी। महात्मा गांधी जैसा महान व्यक्तित्व शायद सदियों में पैदा न हो। भगवान ने मनुष्य को दुनिया का सबसे श्रेष्ठ प्राणी बनाया है क्योंकि उसके पास अनमोल वस्तु है दिमाग। उसके पास सोचने की शक्ति है, विचारों को प्रगट करने की स्वतंत्रता है, लेकिन यदि इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो यह बात खरी नहीं उतरती। हमेशा सच्चाई का गला घोंटा गया। अपने विचार दूसरों पर थोपने के लिए मजबूर किया गया। मानवता को कुचलने के लिए दरिन्दों ने हमेशा अत्याचार किए। सच्चाई के लिए सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा, ईसा मसीह को अपने कंधों पर सलीब ढोनी पड़ी, आजादी की मांग करने वालों को नाजी जर्मनों ने मौत के घाट उतार दिया। सत्य कहने वाले को या तो जेलो में भेज दिया गया या कठोर यातनाएं दी गई।
विश्व के सभी धर्म सद्भावना प्रेम, प्यार आपस में मेल जोल का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन इतिहास साक्षी है कि विश्व में सबसे अधिक खून खराबा धर्म के नाम पर ही हुआ है। गोडसे का कहना था कि अहिंसा के नारे में हिन्दुओं को नपुंसक बना दिया है। अत: हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर एक हिन्दू ने दूसरे हिन्दू की हत्या कर दी। वह भी ऐसे हिन्दू की जिसने सभी धर्मों का आदर किया था। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा लेकिन जो भूमिका गांधी जी ने अदा की भारत ही नहीं पूरा विश्व उसे स्वीकार करता है। उस समय हिन्दुओं में एक ऐसा वर्ग भी था जो भारत के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को दोषी ठहराता था। कुछ लोग भारत के सम्राट शहीदों भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा को न रोकने के लिए महात्मा गांधी की मुख्य भूमिका मानते थे। महात्मा गांधी सदैव कहते थे कि पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर बनेगा लेकिन गांधी की विनम्र नीति पाकिस्तान बनने में सहायक साबित हुई। महात्मा गांधी ने सदैव नेहरू का पक्ष लिया। गांधी की हिन्दू विरोधी नीतियों से आहत होकर नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचा था।
महात्मा गांधी को मारने के लिए नाथूराम गोडसे ने पहले अपनी टीम बनाई। गांधी की हत्या के लिए 6 व्यक्ति पूणे से मुम्बई पहुंचे। नाथूराम गोडसे, नारायण आपटे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, दत्तात्रेय वाडगे और गोपाल गोडसे। इनमें से दो व्यक्ति 17 जनवरी को हवाई जहाज से दिल्ली पहुंचे। गांधी जी को मारने का पहला प्रयास 20 जनवरी 1948 को किया गया था। करकरे और मदनलाल पाहवा अपने बिस्तरबंद में शस्त्र लपेटकर फ्रंटियर मेल से अगले दिन पहुंचे। गोपाल गोंडसे और बाडगे रात्रि की ट्रेन से पहुंचे। ये सभी छ: लोग दिल्ली के व्यस्त क्षेत्र कनाट पैलेस स्थित मरीना होटल के कमरा नं. 40 में मिले और षड्यंत्र को सफल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगे। भारतीय पुलिस अधिकारियों को इसकी जरा भी भनक नहीं लगी। 18 जनवरी को रविवार के दिन इन सभी लोगों ने बिड़ला भवन का भ्रमण किया और इसके चप्पे-चप्पे को बड़े गौर से देखा। उस समय बिडला भवन के पीछे बड़े-बड़े जंगल हुआ करते थे। 19 जनवरी को सोमवार था। इस दिन गांधी जी का मौनव्रत था। सायंकाल गांधी जी की प्रार्थना सभा में यह सभी शामिल हुए ताकि 20 जनवरी का प्लान सफल हो सके। 20 जनवरी षड्यंत्र वाले दिन यह लोग प्रात: ही बिडला भवन पहुंचे उन्होंने देखा कि जिस स्थान पर गांधी जी प्राय: प्रार्थना करते हैं उससे कोई 7-8 फीट की दूरी पर एक छोटी सी खिड़की है। मदनलाल पाहवा ने इस खिड़की की तरफ देखा तो पता चला कि यह बिड़ला भवन के एक नौकर के छोटे से क्वार्टर में स्थित है। मदनलाल इस खिड़की के जरिए बिड़ला भवन में बम विस्फोट करेगा और बाडगे इसी खिड़की में से गांधी जी पर अपनी पिस्तौल से निशाना लगाएगा। बाडगे ने उस क्वार्टर के नौकर दुर्गा प्रसाद पांडे को दस रुपये का नोट थमाते हुए कहा हम यहां से गांधी जी की एक फोटो खींचना चाहते हैं। गोपाल गोडसे को कहा कि तुम यहां से हथगोला फैंकना उसके पश्चात बाडगे को गांधी जी पर गोली चलानी थी।
करकरे भी फायर करने का इंतजार कर रहा था क्योंकि उसे भी वहां से फायर करना था। गोंडसे भी उससे कुछदूरी पर बैठा था और यह निर्णय लिया गया कि ज्योंही गोंडसे दाढ़ी में खुजली करेंगे वैसे ही सभी लोग एक साथ मिलकर गांधी जी का सफाया कर देंगे। दुर्भाग्यवश गोपाल गोंडसे का हाथ खिड़की तक नहीं पहुंचा तो उसने वहां पड़ी खाट खींची और हड़बड़ी में जैसे उस पर चढऩे लगा उसकी रस्सी टूट गई। करकरे और बाडगे भी भयभीत हो गए लेकिन मदनलाल पाहवा ने उचित समय पर दियासलाई सुलगाई और बम का फ्यूज जला दिया। बम फटा और जोर का धमाका हुआ। गांधी जी जहां प्रार्थना कर रहे थे उसके पीछे सीमेंट से बनी दीवार ध्वस्त होगई। इस घटना के बारे में भारतीय समाचार पत्रों में लम्बे-लम्बे समाचार प्रकाशित हुए। उस समय के गृहमंत्री सरदार पटेल ने इस दुर्घटना पर अफसोस जाहिर किया। लेकिन गांधी जी शांत रहे और उन्होंने लोगों को शांति बनाए रखने की अपील की। उधर नाथू राम गोंडसे जिस टैक्सी से आया था उसे उसने वहीं रोक रखा था। वह अपने तीन साथियों को लेकर मरीना होटल गया अपना सामान उठाकर वहां से भाग निकला लेकिन मदनलाल को पुलिस ने दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया।
उस समय के गृहमंत्री सरदार पटेल ने इस घटना को बड़ी गंभीरता से लिया और बिड़ला भवन में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की तलाशी का अभियान शुरू किया परन्तु गांधी जी ने इसका विरोध शुरू किया। उन्होंने कहा कि मेरा रक्षक राम है। यद्यपि तुमने यहां आने वालों की तलाशी लेनी आरम्भ करदी तो मैं दिल्ली को सदा के लिए छोड़ दूंगा। बाद में पुलिस की कार्रवाई से मदनलाल पाहवा टूट गया और 20 जनवरी के षड्यंत्र का उसने पूरी तरह पर्दाफाश कर दिया था जो पुलिस जांच में शत प्रतिशत सही निकला।
बाद में 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के लिए उचित दिन चुना गया। उस दिन नाथूराम गोंडसे तांगे की सवारी से बिड़ला भवन पहुंचा। प्रार्थना स्थल पर गांधी जी का आसन लगा था। नाथू राम उस आसन से 30-35 फुट की दूरी पर चुपचाप बैठ गया। गांधीजी उस दिन प्रार्थना सभा में कुछ देरी से आए। उपस्थित सज्जनों ने अपनी-अपनी जगह बना ली। लोगों ने ऊंची-ऊंची आवाज में बापू जी-बापूजी पुकारना आरम्भ किया। जैसे ही यह आवाज नाथूराम गोंडसे के कानों में गूंजी। वह एक तरफ मुड़ा उसके दोनों हाथ पैंट की जेबों में थे। उसने बायां हाथ बाहर निकालकर पिस्तौल का लॉक खोला। सर्दियों के दिन थे बापूजी के शरीर पर केवल लंगोटी थी और शरीर नंगा था। जब गांधी जी उससे केवल चार-पांच कदम दूरी पर थे तो नाथूराम गोंडसे ने तीन गोलियां बापू की छाती पर दाग दी। गोली लगते ही महात्मा गांधी जी के मुंह से हे राम के शब्द निकले और उसी क्षण धरती पर गिर गए उनके प्राण पखेरु उड़ चुके थे।
अंग्रेजों की दासतां से मुक्ति दिलाने के लिए किसी न किसी व्यक्ति को आगे आना ही था। महात्मा गांधी नेतृत्व प्रदान करने के लिए अहिंसा का कवच पहनकर अंग्रेजों की लाठी गोली खाने के लिए आगे आए। इसी प्रकार उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से यह जान लिया था कि अंग्रेजी शासकों ने भारत को आजाद करने का अंतिम निर्णय कर लिया है तो कांग्रेस और उसके नेताओं को नई जमीन तलाश कर लेनी चाहिए किन्तु नेहरू जी ने यह नहीं माना। कांग्रेस नेताओं के लिए गांधी जी के सिद्धांत एवं आदर्श उनके लिए एक कवच मात्र थे। सचमुच आज गांधी जी बहुत याद आ रहे हैं यदि उनके दूरदर्शिता पूर्ण सुझाव को नेहरू जी ने मान लिया होता संभवत: राष्ट्र रसातल की ओर गहरे में न धस्ता और न ही नैतिक पतन है। सत्य, अहिंसा और धर्म के जिस आधार को गांधी जी ने अपनाया था यदि देश के कर्णधारों ने उसी रूप में अपना लिया होता तो न कांग्रेसियों की मानसिकता का पतन होता, न देश में घोटाले होते। गांधीजी के इन्हीं आदर्शों एवं सिद्धांतों के कारण भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माऊटबैंटन ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिए जाने का श्रेय महात्मा गांधी को दिया था। गांधीजी को महात्मा का सम्मानजनक सम्बोधन तत्कालीन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल द्वारा लंगोटी वाला फकीर कहे जाने के पश्चात प्रचलित हुआ था।
शास्त्रों में लिखा है कि ऐसे पुरुष मरा नहीं करते लेकिन आज की परिस्थितियों को देखकर यह पंक्ति खरी नहीं उतरती। आज देश किधर जा रहा है- नेताओं की सोच से लगता है कि गांधीवाद मर चुका है और फिर उसके जिंदा होने की कोई उम्मीद नहीं है। जब हिंसा और रुढि़वादिता के सामने सब लोगों ने हथियार फेंक दिये हो और सम्प्रदायवादी संकीर्ण विचारों एवं धर्म के नाम पर घृणा और नफरत फैलाने वाले लोग हर गली, मोहल्लों, हर गांव में सीना तानकर खुले घूम रहे हैं। तब गांधी के सिद्धांत कहां बचे? आज भारत वर्ष के किसी हिस्से में अहिंसा, प्रेम के दीवाने गांधी की आवाज सुनने को नहीं मिलती। यदि देश के नेताओं ने गांधीजी की शिक्षाओं, उनकी नीतियों एवं उनके आदर्शों, सिद्धांतों पर अमल किया होता तो निश्चित ही देश की नियति कुछ और ही होती। (विभूति फीचर्स)