मदमाता बसंत - सुनील गुप्ता
(1)" म ", मन
को भाए और लुभाए
चला आया प्रिय बसंत !
हर्षाए और सरसाए.....,
गुनगुनाए खिला चले बसंत !!
(2)" द ", दस्तक
देते चल रही
अब बासंती मकरंदी बयार !
भ्रमर टोली चली नाचते....,
यहाँ वहाँ पे हरेक डार-डार !!
(3)" मा ", माहौल
बना है उत्सव जैसा
और महक आए हैं उपवन कानन !
नवपल्लवें खिलखिला रहीं....,
सज आए हैं सभी के शुभानन !!
(4)" ता ", ताजी
मंद-मंद हवाएं
ले चलें हैं दूर तन-मन को !
कलियाँ देख मुस्कुराएं.....,
गाए अब जीवन हर्षाता मन को !!
(5)" ब ", बहारें
देख चहके हैं फूल टेसू
चले कोयल कुहू-कुहू गाए !
पहन धानी चुनरिया चली......,
अब वसुंधरा हौले-हौले मन हर्षाए !!
(6)" सं ", संताप
हरें खुशियाँ बाँटे
चले बसंत भरे जोश उत्साह उमंग !
चहुँ ओर मधुर स्वर लहरियां छेडें.....,
अब चलें सभी वनपंछी और विहंग !!
(7)" त ", तरन्नुम
में होकर मदमस्त
चले गाए झूमें मदमाता बसंत !
धूप खिली झूमी नाची वल्लरियां...,
अब शिशिर का हो रहा है अंत !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान