मधुमासी मुक्तक - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
Sat, 4 Mar 2023
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सज रहे हैं मंजरी से वृक्ष सब मधुमास में।
मन सुवासित कर रही घुल गंध जिनकी स्वास में।
आम जामुन बेल कैथा और महुआ जँच रहे,
लद रहे हैं फूल अब कचनार और पलास में।
ताल पोखर झील नदियाँ रूप नव दिखला रहीं।
स्वच्छ जल ले पनघटों से नारियां अब जा रहीं।
फूटते हैं गीत अनुपम मन बसन्ती जब हुए,
झाँझ-ढोलक संग पायल ध्वनि सभी मन भा रहीं
-कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव,, उत्तर प्रदेश