गीत - मधु शुक्ला
Mar 13, 2024, 22:35 IST
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वही धनवान है जग में जिसे उपलब्ध अपनापन,
इसे ही ढूँढता रहता धनी निर्धन सभी का मन।
कमा कर ढ़ेर दौलत का रहे हैं चैन से कितने,
मिली भौतिक खुशी लेकिन न मुस्काये मधुर सपने।
गहे अनुराग की अनुभूति उर वह धन न दे साधन..... ।
मधुर वाणी, क्षमा, कर्तव्य, ममता, त्याग से नाता,
मनुज की जिंदगी में हर्ष अपनापन सदा लाता।
प्रफुल्लित मन बदन रहता उमंगों से खिले आनन...... ।
जिन्हें इस बात का है बोध रहते वे सुखी जग में,
अकेलापन न चुभता है कभी जीवन सफर मग में।
करे जब प्राप्त अपनापन सजे संगीत से धड़कन...... ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश