गीत - जसवीर सिंह हलधर

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भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।

आग जगाए यही हृदय की ।।

इसकी पड़ी जहां पर छाया ।

उसका रोम रोम झुलसाया ।।

कल तक जो प्यारी लगती थी ,

चिता बनी है आज समय की ।।

भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।1

भूख नदी तट से टकराई ।

लहरों ने भी माटी खाई ।।

इसके कारण हुई लड़ाई ,

ये ही कारक बनी विलय की ।।

भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।2

पग पग पर अंगार दबे है ।

जठर आग के सभी सगे है ।।

कच्ची नींद उठा देती है ,

काम देव को भूख प्रणय की ।।

भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।2

दोष नहीं मुर्गी चूजे का ।

भोजन जंतु एक दूजे का ।।

नियम प्रकृति का सब पर लागू ,

यही कहानी भूमि निलय की ।।

भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।3

भूख मनुज को दास बनाती ।

दमन करे तो ख़ास बनाती ।।

जब भी सीमा यह तोड़ेगी ,

कारक होगी महा प्रलय की ।।

भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।4

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून