गीत - जसवीर सिंह हलधर

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चैतन्य तरुण हो गयी धरा ,जब से मेघा जल बरसाये ।

कोयल ने राग विरह छोड़ा, मल्हार राग फिर दुहराये ।

धरती मल मैल क्षरण करके, देखो नव यौवन पाया है ।

नदियों ने पानी ढो ढो कर , सागर का मन दहलाया है ।

हरियाली है सब हरा भरा  ,ऊपर से मेघ दूत छाये,

अवनी की कोख हरी करने, मेघा आये मेघा आये।।1

बंजर का मंजर टूट रहा ,धरती से अंकुर फूट रहा ।

सूखा सा दूब तना देखो ,मनचाहा पानी लूट रहा ।

तितली उपवन में डोल रही ,नव रंग पंखुरी फैलाये,

कलियां मदमस्त नाचती है, भँवरों ने गीत नए गाये ।।2

क्रोधित होकर फटते बादल, गुस्सा भी अपना दिखा रहे ।

मनमाने प्राकृत दोहन से ,मानस को संयम सिखा रहे ।

दामिनि ज्यों कड़के अंबर में  ,घर बार मवेसी घबराये,

पर्वत चट्टान गिरे  झर के ,वृक्षों को  साथ  बहा लाये ।।3

गिरिराज हिमालय से निकली ,निर्झरणी का यौवन देखो ।

सागर से मिलने को आतुर ,नदियों का तीव्र गमन देखो ।

मदमस्त उफनती धारों से ,पुल सड़क भवन घायल पाये ,

थर थर कांपे मिट्टी के घर ,"हलधर" भय से चक्कर खाये ।।4

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून