गीत - जसवीर सिंह हलधर

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संतान की खातिर शिला भी तोड़ती है मां।

अपने लिए कुछ भी कभी क्या जोड़ती है मां ।।

बेटे भले दो चार हों या तीन बेटियां,

करती सभी को प्यार वो देती है रोटियां ।

क्या भूख से रोता किसी को छोड़ती है मां।।

अपने लिए कुछ भी कभी क्या जोड़ती है मां।।1

बच्चे सदा खुशहाल हों रोती है आह में ,

गर आँधियाँ आयें कभी बच्चों की राह में ।

तूफान के भी होंसलों को मोड़ती है मां।।

संतान की खातिर शिला भी तोड़ती है मां।।2

देखा नहीं हमने  कभी ईश्वर जमीन पर,

शायद उसी का रूप मां ऐसा यकीन कर ।

लगता उसी की बागवानी गोड़ती है मां।।

अपने लिए कुछ भी कभी क्या जोड़ती है मां।।3

क्या जानते थे हम यहाँ दुनियाँ जहान को,

उसने दिए हैं पंख ये ऊंची उड़ान को ।

अज्ञानता का घट हमारा फोड़ती है मां ।।

संतान की खातिर शिला भी तोड़ती है मां।।4

उसने लुटाया चैन भी दिन और रात का,

वो दूध जो "हलधर" पिये है कर्ज मात का ।

गर्दन बुरे हालात की झकझोड़ती है मां ।।

अपने लिए कुछ भी कभी क्या जोड़ती है मां ।।5

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून