गीत - जसवीर सिंह हलधर

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कैसे कहूँ कथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।

हँसते हँसते फांसी झूले देश न पाये भूल ।।

अंग्रेजी शासन दहला सुन संसद में विस्फोट ।

आज़ादी के प्रयासों की पहली तगड़ी चोट ।

फांसी के फंदे को चूमा जैसे कोई फूल ।।

कैसे कहूँ कथा वीरों की शब्द नही अनुकूल ।।

भावुकता को छोड़ किनारे दौड़े सीना तान ।

मुख पर वही तेज वीरों के वही पुरानी शान ।

जय जय भारत माता बोले फांसी फंदा झूल ।।

कैसे कहूँ कथा वीरो की शब्द नहीं अनुकूल ।।

आजादी की खातिर तीनों गए निशानी छोड़ ।

थमा गए पैगाम देश को जीवन बंधन तोड़ ।

नींद उड़ी गोरे शासन की जमी मुकुट पर धूल ।।

कैसे कहूँ कथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।

सरकारी फाइल में अब भी आतंकी है नाम ।

इस अभियोग दुरुस्ती में क्यों हुआ नहीं हैं काम ।

प्रश्न चुभे "हलधर" छाती में ज्यों कीकर का शूल ।।

कैसे कहूँ कथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।

-  जसवीर सिंह हलधर, देहरादून