गीत - जसवीर सिंह हलधर

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सात दशकों बाद हम आबाद हैं घातों के बाद ।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।

थे बहुत बेदर्द लम्हे मुल्क जब अपना बटा।

खून की बहती नदी थी और बारूदी घटा।

जिन्न जिन्ना पर चढ़ा था और नेहरू मौन था ,

प्राण अपने दे गए बापू मुनाजातों के बाद ।।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।1

अब पड़ोसी घूमता है ले कटोरा भीख का ।

लाभ लेता था हमारी नेक नीयत सीख का ।

घात पर प्रतिघात करना अब हमें भी आ गया ,

अक्ल अब आने लगी है बात पर बातों के बाद ।।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।2

पाक में आटा नहीं आवाम भूखी है वहां ।

ख़ास गंदुम के लिए पहचानता जिसको जहां ।

भीख देने को जिसे अब शेख भी पीछे हटे ,

लाख डालर भी न आए दस मुलाकातों के बाद ।।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।3

भूमि से आकाश तक अब देश मेरा बढ़ रहा ।

हर दिशा में धाक अपनी आज भारत मढ रहा ।

कर्म ऐसे कर रहा जो विश्व में सम्मान हो ,

अजनबी को आसना कहता मदारातों के बाद ।।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।4

भारती के केतु को अब विश्व सारा जानता ।

विश्व में बंधुत्व वाला देश हमको मानता ।

कुछ गिले शिकवे हमारे हों किसी भी देश से ,

कर रहे "हलधर" मदद उनकी खुराफ़ातों के बाद ।।

दिन सुहाने आ रहे बारूद की रातों के बाद ।।5

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून