गीत - जसवीर सिंह हलधर
जीवन का पथ चलना होगा ,दुख सुख साथ निगलना होगा ।
बीच राह में यह मत पूंछो ,कितनी मंजिल और बची है ?
हम सब एक डगर के राही ,साथ साथ सबको चलना है ।
तपती धरती की छाती पर ,एक एक सबको जलना है ।
रिश्ते नाते सभी तोड़कर ,जाना सब कुछ यहीं छोड़कर ,
कफन ओढ़कर यह मत पूछो ,कितनी मलमल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूछो,कितनी मंजिल और बची है ?1
नागिन रोज डराने आती , मुझे ओस की बूंद मानकर ।
भँवरा रोज चमन से जाता , कलियों की मुस्कान पानकर ।
जीवन लीला के उपक्रम में , जीते सभी जन्तु हैं भ्रम में ,
मरघट से जाकर मत पूंछों, कितनी हलचल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूछो, कितनी मंजिल और बची है ?2
रानी आज बनी बैठी जो ,पिछले जन्मों में थी दासी ।
आज अमावस जो दिखती है ,पहले वो थी पूरनमासी ।
अब भी मौका कर्म सुधारो , आने वाला जन्म सुधारो ,
कीचड़ में घुस यह मत पूंछो ,कितनी दलदल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूछो,कितनी मंजिल और बची है ?3
लख चौरासी जन्म हुए हैं ,तब यह मानस देह मिला है ।
अच्छे कर्मों के बदले में ,भारत माँ का नेह मिला है ।
प्रेम राग से भरो गगरिया ,"हलधर"देख रहा सांवरिया ,
रात ठिठुरती से मत पूंछो ,कितनी कम्बल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूंछो ,कितनी मंजिल और बची है ?4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून