सुन हृदय की प्रार्थनाएँ - मीनू कौशिक

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सांझ  आ  बैठी   है  द्वारे ,  हम  प्रतीक्षा  में  तुम्हारे ।

दीप  के  संग  जल  रहे  हैं , द्वार  पर  नैना  हमारे ।

सोम  विषधर  के  सहारे , रजनी  राका  डंक  मारे ।

हो  चली  अब  सांस  बोझिल, कर  रही  हैं  याचनाएँ ।

प्राणधन  अब  लौट  आओ , सुन  हृदय  की  प्रार्थनाएँ ।।

है  बताओ  कौन   बाधा,  क्यों  ये  आखिर  मौन  साधा ।

प्राण ! तुम  बिन  तन  है आधा , नीर  बिन ये मीन  राधा ।

आँख  का  कजरा  हमारे , बह  रहा   है  अश्रु  धारे ।

भाल   बिंदिया  केश  गजरा , सह  रहे  सब  वंचनाएँ  ।

प्राणधन  अब  लौट  आओ , सुन  हृदय  की  प्रार्थनाएँ ।।

हाथ  के   कंगन   पुकारे ,  पाँव  के   घुंघरू   कुंवारे ।

आँख  के  सब  स्वप्न  प्यारे , खो  चुके  हैं  अर्थ  सारे ।

गीत  सब  चुप  हैं  अधर  के , सो  चुके  हैं  भाव  उर के ।

हो  चला  अब  तन  शिथिल , मन  सह  रहा  है  यातनाएँ।

प्राणधन  अब  लौट  आओ , सुन   हृदय  की  प्रार्थनाएं ।

 ️.मीनू कौशिक 'तेजस्विनी', दिल्ली