हाथों की लकीरें - दीपक राही

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हाथों की लकीरों को,

मैंने कभी नहीं पढ़ना चाहा,

कभी किसी ज्योतिष से,

दशा दिशा नहीं पूछी,

नक्षत्र ग्रह नहीं पूछें,

कभी विश्वास नहीं किया,

कुंडलियों के लेखों पर,

भले ही कितनी उलझती हो,

भाग्य की रेखाएं आपस में,

रहा आश्वस्त हमेशा,

अपने श्रम करती हथेली पर,

कभी नहीं बांधे धागे कलाई पर,

ना ही जानना चाहा भविष्य,

जो हाथों की लकीरों पे,

दर्शाया जा रहा हो,

ना ही जानना चाहा,

कभी अपनी जीवन रेखा को,

कि कितनी लंबी है जिंदगी,

सब कुछ जानते हुए,

फिर भी समझ नहीं पा रहा हूं,

क्यों चला जा रहा हूं अब,

आंखें मूंद कर.....

- दीपक राही, आर०एस०पुरा०,जम्मू , जे एन्ड के