ख़त - सुनीता मिश्रा

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आज जब गुजरी

अपने डाकखाने के बगल से

तो जहन में यूँ ख्याल आया...

आधुनिकता के इस

युग मे..

क्या खत्म हो गयी हैं

समवेदनायें...?

जब खत्म हो ही गई है

समवेदनायें तो,

फिर कौन लिखेगा

खत?

भला खत लिखने की

जहमत कौन उठाए?

कौन डाकखाने तक जाये?

फिर कैसे आयेगा

खत लेकर डाकिया?

दिखता है जब भी

डाकिया..

पूछ लेती हूँ उससे...

क्या कोई पत्र आया है..?

कह देता वो भी हँसकर

क्यूँ मजाक करती हो...

आधुनिकता के इस दौर मे

एस.एम.एस और व्हाट्सएप के

इस युग मे...

किस को फुर्सत है...

खत लिखने की और

किसे है फुर्सत

खत पढने की...

अब पहुंच जाते हैं

संदेश पलों मे...

फिर क्यूँ खत लिखेगा कोई

कुछ सोचने लगती हूँ मैं

कि क्या सच मे ..

खत्म हो जायेगा डाक विभाग..

आने वाले कुछ वर्षों मे...?

-️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर