लज्जा - मधु शुक्ला
Oct 15, 2023, 23:37 IST
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मानती सर्वस्य लज्जा को सदा नारी,
स्वप्न उसका एक ही रहना सदाचारी।
लाज से बढ़कर नहीं परिधान, धन, गहना,
नारियों ने यह स्वतः ही बात स्वीकारी।
ईश की सौगात लज्जा से सुसज्जित हो,
गेह के हितार्थ वह ममता क्षमा धारी।
वास लज्जा का नयन में है यही सच है,
बात को स्वीकारती है सृष्टि यह सारी।
बंधनों के बिन खुशी से जी सके लज्जा,
ज्ञानियों ने सोच यह हर वक्त विस्तारी।
मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश