कुम्भकार की दीवाली - रेखा मित्तल

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दिल दुख गया यह देख कर

2 के लिए बहस करती औरतें

10 में पांँच दिए

फिर भी इतना मोल-भाव

वह भी गरीब कुम्हार से

यही वह लोग हैं

जो मॉल में जेबें कटाते हैं

लेकर 2000 का पर्स

सेल में, खुद पर इतराते हैं

कभी तो सोचो इन कुम्हारों के लिए

साल भर के त्यौहार के लिए

दिन-रात मेहनत करते हैं

और रोज दिए बनाते हैं

यदि बिना किसी मोल-भाव के

हम भी खरीद ले मिट्टी के दीये

तो यह भी मना ले दीवाली

इनके भी रोशन हो जाए घर

उनके घरों में भी उजाला हो जाए

दिवाली की सार्थकता इसमें

सभी के घर रोशन हो

सभी के दिलों में उजाला हो

केवल खुद का घर ना जगमगाएं

बल्कि समाज में ज्ञान की रोशनी हो

प्यार, स्नेह और सहयोग के

दीयो से सबके घर रोशन हो!!

- रेखा मित्तल, सेक्टर-43 चण्डीगढ़