ख्वाब माँथे मउर - अनिरुद्ध कुमार
Feb 27, 2024, 22:45 IST
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चार बरिस उनकर, एक बरिस राउर,
सोंचलीं समझलीं, नीमन आ बाउर।
कामकाज जोखीं, चाल-ढाल पाउर,
फायदा कायदा, मांग रखीं आउर।
ठोक दीहीं कीला, मत कूँची माहुर,
बेकारे बोलल, हो जाई छाउर।
चूकनी त गइनी, तीत मीठ बाउर,
मौका ना पाइब, लेत रहीं चाउर।
भेदभाव काहे, चाल करीं झाँउर,
प्रेमभाव राखीं, जातपांत बाउर।
जनता हीं मालिक, रोज होई दउर,
लोग कही ज्ञानी, भांजत रहीं लउर।
मौकाबा चेतीं, देख लीं घुड़दउर,
वादा पर वादा, ख्वाब माँथे मउर।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड