कविता - जसवीर सिंह हलधर

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गाँधी जी के काले बंदर ,और लोहिया के दशकंदर ।

मुझसे मेरी जाति न पूछो ,भोर हो रही रात न पूछो ।।

भाषणबाजी करके तुमने ,वरणों को बदनाम किया है ।

परिवारों को दिया बढ़ावा ,ऐसा गंदा काम किया है ।

बांट दिया है तुमने मानव ,तोड़े अन्तर्ध्वनियों के रव ,

सामाजिक ताने बाने की ,बल्ली तोड़ कनात न पूछो ।।1

अपनी कीमत खूब बढ़ाई ,तुमने मेरा दाम न जाना ।

शहरों को ही रहे सजाते ,भोला भाला ग्राम न जाना ।

योजन परियोजन हैं अंधे ,चौपट किये गांव के धंधे ,

अर्थ तंत्र का रूप बिगाड़ा ,अब अपने उत्पात न पूछो ।।2

जाति पांति को दिया बढ़ावा,भाव उजाड़े निर्वाचन के ।

साम्यवाद का ढोंग रचाकर,ढेर लगाए तुमने धन के ।

भाषण में देते हो गली,करते हो करतूत निराली ,

संस्कृतियों की भुजा मोड़कर ,किसकी ये सौगात न पूछो ।।3

बदल दिया इतिहास देश का ,दर्द हमारा क्या पहचाना ।

कैसे मोल चुकाओगे अब ,तोड़ चुके जो ताना बाना ।

मतदाता भयभीत दिख रहा,डरते डरते गीत लिख रहा ,

मंदिर मस्जिद रटने वालो ,"हलधर" की औकात न पूछो ।।

मुझसे मेरी जाति न पूछो,भोर हो रही रात न पूछो ।।4

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून