कविता (मैं भारत हूँ) - जसवीर सिंह हलधर

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सागर मेरे पग धोता है ,

नगपति भी ताज सँजोता है ।

प्राचीन सभ्यता का रथ हूँ ,

मैं भारत हूँ मैं भारत हूँ।।

मैं विश्व गुरु कहलाता था ,

खुद वैभव पर इठलाता था ।

आलस्य कोप ने घेर लिया ,

सारे वैभव को ढेर किया ।।

फिर गौतम आकर बुद्ध हुआ ,

थोड़ा मन मेरा शुद्ध हुआ ।

तब सत्य अहिंसा नारों में ,

लग गयी जंग तलवारों में ।।

मंगोल हूण अफगानों ने ,

मुगलों ने और पठानों ने ।

वर्षों कमजोर किया मुझको ,

जी भर के लूट लिया मुझको ।।

दासत्व भार को ढो ढो कर ,

सदियों खायीं मैंने ठोकर ।

विष बीज गये गौरे बोकर ,

आज़ाद हुआ खंडित होकर ।।

नेताजी को मैं भूल गया  ,

गाँधी की गोदी झूल गया ।

बापू भी स्वर्ग सिधार गये ,

खुद के कर्मों से हार गये ।।

राजाओं के रुख मोड़ मोड़,

छोटे राज्यों को जोड़ जोड़ ।

ये लोह पुरुष ने काम किया ,

सुगठित स्वरूप अंजाम दिया ।।

बाबा की मेहनत संविधान ,

यह ग्रंथ आज गीता समान ।

लेकिन कश्मीरी अकड़ गये ,

जिन्ना झांसों में जकड़ गये ।।

कबायली हमला बोल दिया ,

केसर घाटी विष घोल दिया ।

तब राज हरि सिंह दिखा विकल ,

पकड़ा मेरा ही तब आँचल ।।

मेरी सेना ने दिया दखल ,

पाकिस्तानी प्रयास विफल ।

नेहरू अब्दुल्ला की जोड़ी ,

फिर खेल गयी उल्टी कोड़ी ।।

तब दफा तीन सत्तर जोड़ी ,

किस्मत कश्यप कुल की फोड़ी ।

यह सारे धक्के खा खा कर ,

आया फिर मेरा रूप निखर ।।

मैं फिर से प्रजा तंत्र बना ,

माओ से नेहरू बैर ठना ।

नेहरू ये समझ नहीं पाया  ,

मेनन ने ऐसा बहकाया ।।

झाओ ने हमला बोल दिया ,

तोपों का मुँह यूँ खोल दिया ।

नेहरू की नहीं तैयारी थी ,

हथियारों की लाचारी थी ।।

सीमित साधन हथियारों से ,

सैनिक खेले अंगारों से ।

सेना मेरी तब खूब लड़ी ,

वीरों की गाथा भरी पड़ी ।।

यह पीड़ादायक झटका था ,

नेहरू मन विचलित भटका था ।

नेहरू यह झेल नहीं पाये ,

हुए उदासीन से मुरझाये ।।

ऐसा यह वज्र प्रपात हुआ ,

नेहरू को हृदय आघात हुआ ।

अक्सआई पहले हार गये ,

अब नेहरू स्वर्ग सिधार गये ।।

तब शास्त्री जी ने ली कमान ,

अपनी रक्षा का किया ध्यान ।

सेना को दे साजो सामान ,

आया नारा हो जय जवान ।

कर हरित क्रांति का प्रावधान ,

दूजा नारा था जय किसान ।।

पैंसठ में पाक नहीं माना ,

उसने भी चाहा धमकाना ।

शास्त्री ने उसको जता दिया ,

लाहौर तिरंगा लगा दिया ।।

आखिर में युद्ध विराम हुआ ,

मेरा दुनिया में नाम हुआ ।

षड़तंत्र हुआ लेकिन भारी ,

शास्त्री को खाय गयी यारी ।।

दोबारा सम्मुख आऊँगा ,

अगला अध्याय सुनाऊँगा ।

हलधर" कहलाया जाता हूँ ,

भारत की कथा सुनाता हूँ ।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून