कविता (सफाई का मौसम) - झरना माथुर

त्योहारों के मौसम के साथ एक मौसम सफाई का आया,
और वो न जाने अपने संग में क्या-क्या ही लेके आया।
घर का हर एक कमरा, कोना, और अलमारी साफ होने लगे,
इसके साथ ही साथ खट्टी- मीठी यादों में हम भी खोने लगे।
वो पुराने फोटो, बच्चों के छोटे कपड़े, देख डोलने लगे,
कुछ अनचाहा सामान देने की सोचते हुए भी सजोने लगे।
शादी के टी सेट से जुड़ी थी अपनी पक्की सहेली की यादें,
कुछ पुराने खतों में लिखे थे कभी पिया से किए गए वादे।
अब खिलौनो सहित लूडो, कैरम की खोई गोटे मिलने लगी,
ना जाने अब कितनी चीजे खोई हुई थी,फिर से दिखने लगी।
घर में हम सिर्फ दोनों थे और दो मजदूर बाहर से आ गए,
मानो लगता था जैसे हमसे मिलने कोई मेहमान आ गए।
चार दिन का काम करके वो जाने कितने ही दिन लगाने लगे,
हम भी उनको चाय, पानी, नाश्ता देकर मन बहलाने लगे।
एक दिन वो भी आया जब हमने खुद को साफ सुंदर घर में पाया,
रोशनी, पटाखों, पकवानों से हम सब ने दीवाली उत्सव मनाया।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड