कर्म प्रधान जीवन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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धूप-छाँव सम सुख-दुख हरदम, आते-जाते रहते हैं,

उच्छ्रंखल या मंथर गति से, जीवन धारे बहते हैं।

मत तनाव में आना मानव, निस्पृह बन जीवन जी ले,

घबराये बिन बढ़ते रहिये, यह ज्ञानी जन कहते हैं।

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एक भाव रख कर जीवन में, आगे बढ़ते जाना है,

विषम परिस्थिति में भी हमको, कभी नहीं घबराना है।

विचलित हुए बिना नित रखना, दृष्टि लक्ष्य पर हे मानव,

कार्य पूर्ण हो वह हो पायेंगे, जिनको मन में ठाना है।

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खुद तो निज कर्तव्य निभाना, औरों को प्रेरित करना,

कैसी भी हो विषम परिस्थिति, डट कर सदा खड़े रहना।

इच्छा शक्ति भरी हो जिसमें, उसे नमन करते सारे,

चीर सका पर्वत का सीना,  वो दशरथ मांझी बनना।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश